योगासन करना तो आज की जीवन शैली का महत्त्वपूर्ण अंग है। जब लोग योगासन करते हैं तब किन-किन योगासनों का प्रभाव शरीर के किस-किस अंग पर पड़ता है जिससे निरोग हआ जा सकता है उसके विषय में ज्ञात करना आवश्यक है।
योगासनों का प्रभाव शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों पर
सूर्यनमस्कार योगासन -
इस योगासन के अन्तर्गत बारह योगासनों को करना रहता है और ये 12 योगासन शरीर के मेरुदण्ड ,मेरुरज्जु ,एवं शरीर के छोटे-बड़े जितने भी जोड़ हैं उन अंगों पर इस योगासन का प्रभाव पड़ता है।यह आसन जाँघ ,पैर ,पिंडली ,कुल्हा ,कमर ,महिलाओं का मासिकधर्म की किसी भी समस्या में ,प्रदर ,पाचन एवं मलाशय ,पेट -पीठ ,मष्तिष्क ,गर्दन ,कंधा ,आदि अंगो पर विशेष क्रिया करता है।
पश्चिमोत्तासन -
बैठकर दण्डासन में यह योगासन किया जाता है जिसका प्रभाव शरीर के पाचन तंत्र के निचले भाग पर एवं कमर के साथ -साथ गुर्दा ,मूत्राशय ,यौनग्रन्थि ,मेरुरज्जु ,तथा पैंक्रियाज पर पड़ता है। जब दण्डासन में बैठते हैं तब झुकते समय थोड़ा -बहुत पैर की मांसपेशियों और घुटने पर । अमाशय ,मलाशय ,गुदा ,पीठ, गर्दन,हाथ ,पैर ,एवं महिलाओं के मासिकधर्म तथा प्रजनन अंगों पर भी इसका विशेष प्रभाव पड़ता है
भुजङ्गासन-
लेटकर किया जाने वाला यह योगासन विशेष रूप से कमर और रीढ़ की हड्डी तथा मेरुदण्ड के ऊपरी भाग पर तो अपना प्रभाव डालता ही है और गला तथा थायरॉइड एवं भुजाओं पर भी इस योगासन का प्रभाव पड़ता है। क्लोम ,लिवर ,अमाशय ,पकाशय ,मलाशय पर एवं महिलाओं की मासिकधर्म संबंधी समस्यायों में विशेष इस आसन का कार्य है।
शीर्षासन -
इस योगासन को जब किया जाता है तब स्वतः प्राणायाम तो होता ही है और गला ,मेरुदण्ड ,शरीर का ऊपरी भाग विशेष रूप से, एवं सिर के सभी भागों में रक्त का संचार बहुत अच्छे ढंग से होता है।
सर्वांगआसन -
जैसा कि इसका नाम ही अपने आप में इसके अर्थ को स्पष्ट कर देता है कि यदि कोई योगासन न किया जाय तब केवल इसी योगासन को करने से मष्तिष्क ,पिट्युटरी ग्रन्थि ,थायरॉयड और गला के साथ कमर और रीढ़ पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। वेरीकोज वेन के लिए यह आसन बहुत ही लाभकारी है।
मत्स्यासन -
मछली जल में रहकर जिस प्रकार से सांस लेकर किलोल करती रहती है उसी भाँति इस आसन को करने से फेफड़ा और गले की तन्त्रिका तन्त्र पर प्रभाव और थायरॉयड पर भी पड़ता है। शुक्राणु एवं डिम्बाणु ग्रंथि ,मूत्राशय ,अमाशय ,मलाशय पर भी उत्तम रूप से प्रभावकारी होता है।
मत्स्येन्द्रासन -
बैठ कर किया जाने वाला यह भी योगासन पीठ की मांसपेशी पर और मेरुरज्जु तथा मेरुदण्ड के साथ गला पर भी अपना प्रभाव अच्छी प्रकार से डालता है। मेरुदण्ड का लचीला होना एवं गर्दन के सभी रोगों में तथा फेफड़ा और पेट पर भी इस आसन का अच्छा प्रभाव पड़ता है ,पेट फेफड़ा एवं गर्दन पर इसका प्रभाव है।
चक्रासन -
चक्र का अर्थ ही यह है कि घूमना ,और इसी प्रकार से जब यह आसन किया जाता है तब पैर के जोड़ों के साथ रिड की हड्डी एवं कमर पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
हलासन -
सर्वांगासन के बाद किया जाने वाला यह योगासन पीठ की मांसपेशी पर खिंचाव डालता है और मेरु दण्ड को अधिक रक्त की आपूर्ति करता है। उदररोग के साथ ही मोटापा के लिए प्रभावकारी है एवं रीढ़ की हड्डी में लचक पैदा करता है तथा थायरायड पर भी प्रभाव डालता है। इस आसन का बहुत ही विशेष कार्य "यौन रोग कैसा भी हो उस पर एवं कमर पर भी अधिक क्रिया करता है"।
सुप्तवज्रासन -
बैठकर किये जाने वाले इस आसन का प्रभाव पेट ,फेफड़ा, मेरुदण्ड और कमर के साथ छाती ,जाँघ ,व शरीर के सभी अंगों को लचीला करने में अधिक महत्त्वपूर्ण है,और डायबिटीज में तो यह दवा के रूप में क्रियाशील है। शरीर के सभी कोष और आँत ,लीवर ,किडनी ,प्लीहा के साथ अमाशय -मलाशय पर अधिक क्रिया करता है।
धनुरासन -
लेटकर किये जाने वाले आसन में यह भुजंगासन और शलभासन का सम्मिलित रूप है जिसका प्रभाव मेरुदण्ड ,पीठ की मांसपेशी ,कब्ज ,मन्द पाचन ,लिवर ,पैंक्रियाज ,किडनी ,पेट रोग एवं पेडू तथा कमर के निचे वाले भागों पर तथा गर्दन, कंधा आदि अंगों को प्रभावित करता है। यह एक ऐसा आसन है जिसमें कि नौकासन ,मकरासन ,भुजंगासन ,हलासन एवं शलभासन ,जैसे आसनों का सम्मिलित रूप वाला आसन है।
मयूरासन -
पेट के अंदर के अंगों को और किडनी, स्पलीन ,लिवर ,पैंक्रियाज आदि अंगों पर इस आसन का विशेष प्रभाव पड़ता है एवं डायबिटीज़ रोग हेतु यह आसन रामबाण आसन के रूप में जाना जाता है।
वज्रासन -
यही एक आसन है जो कि भोजन के बाद भी किया जा सकता है। इस आसन को करते समय जब शरीर की सम स्थिति होती है तब इसका प्रभाव कमजोर पाचन ,पेट पर ,गठिया-वात ,पैर की पिंडली एवं घुटना ,टखना ,मलाशय तथा मानसिक समस्या आदि हेतु इसका प्रभाव उक्त अंगों पर पड़ता है।
विपरीतकर्णी आसन -इस आसन को करते समय जब गर्दन और सीना का कुछ हिस्सा भूमि पर पड़ा रहता है तब उसी समय सीना के नीचे का अंग पैर सहित ऊपर उठा होने के कारण शुक्राणु ग्रंथि ,अनियमित मासिकधर्म ग्रंथि एवं गर्भाशय पर इसका प्रभाव पड़ता हैं। कन्धा ,गर्दन ,भुजा पर भी विशेष प्रभाव इस आसन का पड़ता है।
नौकासन-नौकासन का तो सबसे अच्छा प्रभाव हिर्दय पर पड़ता है ,इसके अलावा रीढ़ ,स्नायुतंत्र ,स्वांस संस्थान ,जांघ ,कमर ,पिंडली ,साइटिका नाड़ी ,अमाशय ,पकाशय ,मलाशय आदि पर इसका प्रभाव पड़ता है तथा हार्ट के रोगी के लिए रामबाण है यह आसन।
मकरासन -
यह आसन टांसिलग्रंथि ,रीढ़ और गर्दन (स्पाइनलकार्ड )की विसंगति में उत्तम प्रभाव डालता है।
उष्ट्रासन -ऊँट के सदृश किया जाने वाला यह आसन गर्दन ,कंधा ,रीढ़ ,आँख की रोशनी ,गला रोग ,सिरदर्द ,आदि पर इसका प्रभाव पड़ता है।
योगमुद्रासन -
सभी आसनों का अपना-अपना महत्त्व है। इस योगमुद्रासन को जब किया जाता है तो अमाशय और पकाशय पर दबाव पड़ने के साथ मलाशय पर भी अपना प्रभाव डालता है।
सन्तुलनासन -जैसा कि नाम ही इसका संतुलन है ,इससे अस्पष्ट होता है कि यह आसन शरीर को सन्तुलित करता है और इसका प्रभाव यह है कि शरीर के सभी जोड़ों एवं सभी मांसपेशियों के साथ अंगुली पर विशेष क्रिया करता है।
त्रिकोड़ासन -
यह आसन सन्तुलन आसन के बाद किया जाता है और इसका प्रभाव मेरुदण्ड ,कुल्हा का जोड़ ,रीढ़ के लचीला बनाने में ,एवं कंधा और गर्दन के विकारों के साथ आँखों की ज्योति हेतु विकारों के लिए प्रभावकारी है।
वीरासन -
शरीर के सभी छोटे-बड़े जोड़ और जाँघ बाँह की माँसपेशी तथा फेफड़ा एवं सीना पर अपना प्रभाव डालता है।
गोमुखासन -संधिशोथ के लिए विशेष रूप से किया जाने वाला यह आसन शरीर के समस्त जोड़ों को पूर्णतः क्रियाशील करता है।
सेतुबन्धासन -
इसका प्रभाव तो मुख्य रूप से रीढ़ पर पड़ता है किन्तु शरीर के सभी जोड़ों के साथ वायु विकार पर भी अधिक प्रभावकारी है।
नटराजासन -
यह भी शरीर के सभी जोड़ों पर और पाचन संस्थान के साथ हड्डी पर अधिक प्रभाव कारी है।
एकपाद उत्तानासन -
पेट के अंदर के सभी अवयव जैसे आँत ,अमाशय -पकाशय ,पीठ ,कमर ,नितम्ब ,मेरुदण्ड एवं स्नायुसंस्थान पर विशेष प्रभाव डालता है।
अर्धवक्रासन -
शरीर की सभी ग्रंथियों और मलाशय ,पीठ ,गर्दन ,तथा रीढ़ पर अपनी क्रिया करता है।
बन्ध का लाभ -जालंधर बन्ध ---------------
यद्यपि कोई भी बन्ध को लगाना हो तो बिना किसी गुरु के मार्गदर्शन के बन्ध नहीं लगाना चाहिए। बन्ध लगाना जब आ जाय तो इसका प्रभाव थायरॉयड ,पैरा थायरॉयड ग्रंथि और मष्तिष्क ,हिर्दय ,कण्ठ ,और श्वांस -प्रच्छ्वास पर प्रभाव कारी है। -
उड्डियान बन्ध
आँत ,पेट ,लीवर ,अग्नाशय ,किडनी ,एड्रीनल ग्रंथि ,पाचन शक्ति और नाड़ी संस्थान पर अधिक क्रिया इस बन्ध के लगाने से होती है।
मूलबन्ध -
लैंगिक ऊर्जा शक्ति की वृद्धि ,गुदा प्रदेश ,आँतों का आकुञ्च्न -प्रकुञ्चन ,मंद पाचन ,मलाशय एवं श्वाश क्रिया में अधिक सन्तुलन से विशेष प्रभाव कारी है।
2 टिप्पणियाँ
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