सब लोग मसालों को कई प्रकार से प्रयोग करते हैं। गर्म मसालों के रूप में ,ठंढे मसालों के रूप में ,चाट मसाला के रूप में ,छोले मसाला के रूप में आदि।
जब कि हमारे रसोईं घर में प्रयोग होने वाले सभी मसाले केवल मसाला ही नहीं है अपितु आयुर्वेदिक औषधि है। प्रत्येक मसाला अपने आप में औषधीय गुणों से भरपूर है। यदि लोग मसालों को अल्प मात्रा में अपने आहार में सम्मलित करें तो यही मसाला हमें नुक्सान न करके लाभ ही लाभ पहुँचाता है। मसाला हमें किन-किन गुणों से लाभ देता है उसके विषय में कुछ विशेष ज्ञात करते हैं -
हल्दी -
हल्दी तो इतनी बहुगुणी है कि इसे हमारे लगभग प्रत्येक आहार में सम्मलित किया जाता है। हल्दी टॉन्सिल ,कैंसर ,खाँसी ,बदन दर्द ,रक्त साफ़ करने में आदि के रूप में प्रयोग की जाती है। हल्दी की तासीर गर्म है एवं पाचक है। हल्दी कफ,प्रमेहँ ,तथा चर्म रोग में भी लाभ करती है। यदि किसी को टॉन्सिल हो जाय तो एक चम्मच हल्दी चूर्ण को टांसिल के पास तब तक रखे जब तक कि मुहं की लार के साथ धीरे धीरे स्वतः गले के निचे न उतर जाय। यह चरपरी और कड़वी होने के साथ रूखी भी है।
धनियाँ --------लोग जब कोई भी मसाले वाला आहार बनाते हैं तो धनियां का प्रयोग अवश्य करते हैं। विशेष रूप से हरी धनियां का उपयोग अधिक लोग करते हैं. वह इसलिए कि धनियां का गुण चिकना है तथा यह पाचक है। इसमें एक दोष भी है इसके उपयोग से बहुमूत्र की भी समस्या होने लगती है। धनियाँ वीर्य हेतु उत्तम नहीं है। यह कसैली होने के साथ हल्की कड़वी और चरपरी भी है। उदर में जाने के पश्चात दीपन - पाचन का भी काम करती है। यह ज्वरनाशक और त्रिदोष नाशक भी है। प्यास,जलन,उल्टी,साँस ,खाँसी ,दुर्बलता को दूर कर पेट में कीड़े को भी नष्ट करती है।
लाल मिर्च ---------कुछ भी बनाइये -खाइये उसमें मिर्च का भी उपयोग न हो तो खाने का स्वाद ही व्यर्थ हो जाता है। लालमिर्च गर्म होती है और कफ-पित्त का नाश भी करती है एवं भूख को भी बढ़ाती है। लालमिर्च के अधिक उपयोग से बवासीर भी होने की संभावना अधिक होती है।
काली मिर्च ------------ यह गर्म प्रकृति की होती है एवं भारी होती है। काली मिर्च वात-पित्त को बढ़ाती भी है लेकिन गले को भी साफ़ करती है। इसका उपयोग सर्दी -जुकाम में अथवा ठण्ड के मौसम में चाय या काढ़ा के रूप में अधिक प्रयोग किया जाता है।यह चरपरी ,तीक्ष्ण होने के साथ अगिनिदीपन भी करती है। इसे 2 रत्ती या एक माशा ही लेना चाहिए।
जीरा -
मसालों में सबसे अधिक जीरा का भी उपयोग किया जाता है। जीरा हल्का तो होता है किन्तु गर्म भी होता है। जीरा का एक चम्मच चूर्ण यदि खाली पेट लिया जाय गुन -गुना जल से तो कब्ज और गैस की समस्या नहीं होती है। रात को सोते समय यदि जीरा चूर्ण लिया जाय तो भी कब्ज और गैस की समस्या को दूर करता है। इसके उपयोग से भूख बढ़ती है और पित्त भी बढ़ता है। जो भी है जीरा पाचक है।
लौंग -
इसकी तासीर शीतल है ,लेकिन पाचक है। कफ-पित्त-एवं दूषित रक्त को यह शांत भी करती है लेकिन नेत्र में हानि भी करती है। सर्दी -खांसी में लौंग की चाय या इसका काढ़ा पीने से अधिक लाभ मिलता है। दाँत दर्द में एक लौंग दाँत में दबाने से दांत दर्द एवं दाँत में कीड़ा लगा हो तो उसे भी दूर करती है। रक्त विकार और उल्टी एवं अफारा में लाभ करती है। हिचकी को दूर करने के साथ दर्द को दूर करने का इसमें विशेष गुण है।
जावित्री -
जायफल की जो ऊपरी पर्त् होती है वही जावित्री है। यह हल्की होती है एवं साँस -प्यास -कृमि तथा विष की गर्मी भी शांत करती है। यह मधुर और कड़वी तो है लेकिन गर्म भी है। यह रुचिकारक भी है।
दालचीनी -
इसकी प्रकृति गर्म होती है एवं इसके उपयोग से यदि अधिक मूत्र आता हो या सिर में पीड़ा हो तो उसमें भी यह लाभ करती है। यह वीर्यवर्धक है और मुख की सूजन में भी लाभ करती है। दालचीनी प्यास का नाश करती तो है किन्तु मधुर और कड़वी भी है।
बड़ी इलायची -
हल्की और गर्म होने के साथ यह कटु होती है। बड़ी इलायची कफ -पित्त का नाश करती है और अगिनिदीपक भी है।पाक और रस में चरपरी है, रुक्ष है लेकिन रक्तविकार दूर करती है। खुजली या सांस की समस्या हो चाहे उबकाई या मूत्राशय का रोग हो उसको तो दूर करती ही है किन्तु सिर के रोग या उल्टी खाँसी हो उसे भी यह नष्ट कर देती है।
हींग -
हींग इतनी बहुगुणी है कि लगभग-लगभग प्रत्येक खाने में उपयोग की जाने वाली वस्तु है। यह वात-कफ शूल को मिटाती है और बल तथा वीर्य को भी बढ़ाती है। यह पाचक है एवं उदार रोगों में इसका उपयोग होता है ,तथा दांत में कीड़े लगे हों या किसी भी कारण से दांत दर्द कर रहा हो तो मटर के समतुल्य इसके उपयोग से विशेष लाभ मिलता है।
सोंठ -
अदरख का ही सूखा रूप सोंठ है और बल तथा वीर्य को बढ़ाने में विशेष लाभ करती है। सर्दी -जुकाम-बुखार -खांसी में इसका लाभ है। यदि हिर्दय रोग या बवासीर है तो उसमें भी लाभ करती है।
अजवाइन -
ठण्ड के मौसम में इसका उपयोग सर्दी से बचने हेतु गुड़ के साथ खाने से विशेष लाभ है। यह हल्की पित्त की वृद्धि करती है एवं पाचक होने के साथ गर्म है। यह हल्की, तीक्ष्ण ,और चरपरी भी है। जठरआग्नि के दीपन तो करती है शूल -वात -कफ या गुल्म हो तो उसे भी नष्ट करती है। पेट में कीड़े का नाश और प्लीहा रोग में भी लाभ करती है।
अदरख -
यह अगिनीउद्दीपन के साथ भारी और गर्म है एवं लगभग सोंठ के समान ही लाभ है।
सौंफ -
पुरुषों में शुक्र का उत्पादन करती है। यह हल्की होने के साथ दाह -रक्त-पित्त का नाश करती है। सौंफ तीक्ष्ण और पित्तकारक भी है। इसका गन उदर में दीपन का है और गर्म तथा चरपरी भी है। यह वात-कफ का भी नाश करती है। इसके खाने से दर्द और नेत्र रोग में भी लाभ है। यदि योनि का दर्द हो,पाचन मंद हो ,या पेट में कीड़ा हो तो भी यह लाभ करती है। यह मल को बाँधती भी है और वीर्य को भी हर ले जाती है एवं खाँसी और उल्टी को भी दूर करती है।
छोटी इलायची -
हल्की होने के साथ शीतल और वातनाशक है। यह मुहं की दुर्गन्ध दूर करने के साथ पाचक भी है। यह चरपरी है और कफ नाश के साथ खाँसी बवासीर तथा मूत्र रोग में भी लाभ करती है।
मँगरैल -
यह गर्म होती है और वायु का नाश भी करती है। इसका उपयोग सोहाल ,मठरी ,पूरी ,नमकपारा ,आदि में अधिक उपयोग होता है।
मेथी -
मेथी का उपयोग पेट रोग में लोग अधिक करते हैं जबकि यह गर्म है फिर भी हार्ट समस्या ,बी. पी. एवं गठिया रोग तथा कमर की पीड़ा में भी लाभ करती है। यह पित्त की वृद्धि भी करती है। बल को बढ़ाती है.
प्याज -
कोइ भी चट -पटा आहार हो तो उसमें लोग इसका उपयोग अधिक करते हैं। यह गर्म तो है लेकिन पुष्टिकारक होने के साथ बल को बढ़ाती है। कफ को दूर तो करती है किन्तु वीर्य को भी बढ़ाती है। यह वात को नष्ट करके पित्त की भी वृद्धि करती है।प्याज पाक तथा रस में मधुर है एवं भारी और वायु को नष्ट करती है।
केशर -
केसर चिकना होता है वात -पित्त- कफ का नाश करता है ,यदि सर में पीड़ा हो या पेट में कीड़ा हो उसमे भी लाभ करता है, केसर की विशेशता यह है की यह चिकना और उत्तेजक है। झाई में लाभ के साथ वायु को दूर करता है और स्वाद में कड़वा होता है।
लहसुन----
लहसुन अधिक खाने से पसीना आता है और यह पंच रसात्मक है। गैस बनने पर इसको कच्चे रूप में खाने से अधिक लाभ मिलता है।
नमक ------
नमक गर्म होता है। साभर नमक बादी और कफ को दूर करता है तथा पाचक होता है।
पुदीना ---
पुदीना गर्मी के मौसम में शरीर में शीतलता लाने के लिए अति आवश्यक है क्योकि यह ठंढा होता है और पाचक है, और उलटी को रोकता है।
कस्तूरी----
कस्तूरी गर्म होती है और बल को बढाती है तथा लकवा और मसाने के रोग में लाभ करती है
केवड़ा ----
यह ठंढा होता है तथा मस्तिष्क को तर रखता है दिमाग और ह्रदय को पुष्ट रखता है तथा बेहोशी को दूर करने में और नेत्र ज्योति में लाभ करता है।
गुलाब -----
गुलाब ठंढा होने के साथ दस्तावर होता है यह बल को बढ़ाता है, हैज़ा में भी लाभ करता है और मेदा में भी लाभ करता है।
पान -----
पान दो प्रकार का होता है , एक खाकर निगलने वाला और दूसरा खाकर थूकने वाला होता है। जो निगलने वाला पान है उसमे लौंग ,इलायची ,सौफ ,मिश्री,केशर,चुना,आदि का प्रयोग करते है तो यह पान पाचन को सही रखता है और मुख की दुर्गन्ध को दूर कर मुख शुद्धि करता है। पान मेदा,जिगर,को बल देने वाला होता है और प्यास को रोकता है, वायु नाशक होने के साथ पेट में कीड़ा और कब्ज में भी लाभ करता है, गर्मी के मौसम में पान का शरबत सरीर की गर्मी को दूर करता है।
सिरका -
भोजन के साथ लोग आचार भी अधिक चाव से खाते हैं और आचार में यदि सिरका न हो तो किसी भी प्रकार का आचार हो वह बे स्वाद है। सिरका में एक विशेष अवगुण भी है ,यह वीर्य को फाड़ देता है। सिरका गर्म है और दस्त को रोकता है। यदि अधिक भोजन कर लिया हो तो भोजन करने बाद एक चम्मच सिरका और चार चम्मच पानी के साथ पी लेने से भोजन शीघ्र पच जाता है।यह बलवर्धक एवं भूख को बढ़ाता है। सिरका मन्द पाचन को भी दूर करता है।
कवाबचीनी
यदि कफ,वात और मुख की दुर्गन्ध दूर करना हो तो कवाबचीनी खाने से लाभ है। यह हल्की ,तीक्ष्ण ,गर्म होती है। कड़वी होने के साथ ह्रदय रोग में लाभ करती है और रूचि कारक भी है।
धनियाँ --------लोग जब कोई भी मसाले वाला आहार बनाते हैं तो धनियां का प्रयोग अवश्य करते हैं। विशेष रूप से हरी धनियां का उपयोग अधिक लोग करते हैं. वह इसलिए कि धनियां का गुण चिकना है तथा यह पाचक है। इसमें एक दोष भी है इसके उपयोग से बहुमूत्र की भी समस्या होने लगती है। धनियाँ वीर्य हेतु उत्तम नहीं है। यह कसैली होने के साथ हल्की कड़वी और चरपरी भी है। उदर में जाने के पश्चात दीपन - पाचन का भी काम करती है। यह ज्वरनाशक और त्रिदोष नाशक भी है। प्यास,जलन,उल्टी,साँस ,खाँसी ,दुर्बलता को दूर कर पेट में कीड़े को भी नष्ट करती है।
लाल मिर्च ---------कुछ भी बनाइये -खाइये उसमें मिर्च का भी उपयोग न हो तो खाने का स्वाद ही व्यर्थ हो जाता है। लालमिर्च गर्म होती है और कफ-पित्त का नाश भी करती है एवं भूख को भी बढ़ाती है। लालमिर्च के अधिक उपयोग से बवासीर भी होने की संभावना अधिक होती है।
काली मिर्च ------------ यह गर्म प्रकृति की होती है एवं भारी होती है। काली मिर्च वात-पित्त को बढ़ाती भी है लेकिन गले को भी साफ़ करती है। इसका उपयोग सर्दी -जुकाम में अथवा ठण्ड के मौसम में चाय या काढ़ा के रूप में अधिक प्रयोग किया जाता है।यह चरपरी ,तीक्ष्ण होने के साथ अगिनिदीपन भी करती है। इसे 2 रत्ती या एक माशा ही लेना चाहिए।
जीरा -
मसालों में सबसे अधिक जीरा का भी उपयोग किया जाता है। जीरा हल्का तो होता है किन्तु गर्म भी होता है। जीरा का एक चम्मच चूर्ण यदि खाली पेट लिया जाय गुन -गुना जल से तो कब्ज और गैस की समस्या नहीं होती है। रात को सोते समय यदि जीरा चूर्ण लिया जाय तो भी कब्ज और गैस की समस्या को दूर करता है। इसके उपयोग से भूख बढ़ती है और पित्त भी बढ़ता है। जो भी है जीरा पाचक है।
लौंग -
इसकी तासीर शीतल है ,लेकिन पाचक है। कफ-पित्त-एवं दूषित रक्त को यह शांत भी करती है लेकिन नेत्र में हानि भी करती है। सर्दी -खांसी में लौंग की चाय या इसका काढ़ा पीने से अधिक लाभ मिलता है। दाँत दर्द में एक लौंग दाँत में दबाने से दांत दर्द एवं दाँत में कीड़ा लगा हो तो उसे भी दूर करती है। रक्त विकार और उल्टी एवं अफारा में लाभ करती है। हिचकी को दूर करने के साथ दर्द को दूर करने का इसमें विशेष गुण है।
जावित्री -
जायफल की जो ऊपरी पर्त् होती है वही जावित्री है। यह हल्की होती है एवं साँस -प्यास -कृमि तथा विष की गर्मी भी शांत करती है। यह मधुर और कड़वी तो है लेकिन गर्म भी है। यह रुचिकारक भी है।
दालचीनी -
इसकी प्रकृति गर्म होती है एवं इसके उपयोग से यदि अधिक मूत्र आता हो या सिर में पीड़ा हो तो उसमें भी यह लाभ करती है। यह वीर्यवर्धक है और मुख की सूजन में भी लाभ करती है। दालचीनी प्यास का नाश करती तो है किन्तु मधुर और कड़वी भी है।
बड़ी इलायची -
हल्की और गर्म होने के साथ यह कटु होती है। बड़ी इलायची कफ -पित्त का नाश करती है और अगिनिदीपक भी है।पाक और रस में चरपरी है, रुक्ष है लेकिन रक्तविकार दूर करती है। खुजली या सांस की समस्या हो चाहे उबकाई या मूत्राशय का रोग हो उसको तो दूर करती ही है किन्तु सिर के रोग या उल्टी खाँसी हो उसे भी यह नष्ट कर देती है।
हींग -
हींग इतनी बहुगुणी है कि लगभग-लगभग प्रत्येक खाने में उपयोग की जाने वाली वस्तु है। यह वात-कफ शूल को मिटाती है और बल तथा वीर्य को भी बढ़ाती है। यह पाचक है एवं उदार रोगों में इसका उपयोग होता है ,तथा दांत में कीड़े लगे हों या किसी भी कारण से दांत दर्द कर रहा हो तो मटर के समतुल्य इसके उपयोग से विशेष लाभ मिलता है।
सोंठ -
अदरख का ही सूखा रूप सोंठ है और बल तथा वीर्य को बढ़ाने में विशेष लाभ करती है। सर्दी -जुकाम-बुखार -खांसी में इसका लाभ है। यदि हिर्दय रोग या बवासीर है तो उसमें भी लाभ करती है।
अजवाइन -
ठण्ड के मौसम में इसका उपयोग सर्दी से बचने हेतु गुड़ के साथ खाने से विशेष लाभ है। यह हल्की पित्त की वृद्धि करती है एवं पाचक होने के साथ गर्म है। यह हल्की, तीक्ष्ण ,और चरपरी भी है। जठरआग्नि के दीपन तो करती है शूल -वात -कफ या गुल्म हो तो उसे भी नष्ट करती है। पेट में कीड़े का नाश और प्लीहा रोग में भी लाभ करती है।
अदरख -
यह अगिनीउद्दीपन के साथ भारी और गर्म है एवं लगभग सोंठ के समान ही लाभ है।
सौंफ -
पुरुषों में शुक्र का उत्पादन करती है। यह हल्की होने के साथ दाह -रक्त-पित्त का नाश करती है। सौंफ तीक्ष्ण और पित्तकारक भी है। इसका गन उदर में दीपन का है और गर्म तथा चरपरी भी है। यह वात-कफ का भी नाश करती है। इसके खाने से दर्द और नेत्र रोग में भी लाभ है। यदि योनि का दर्द हो,पाचन मंद हो ,या पेट में कीड़ा हो तो भी यह लाभ करती है। यह मल को बाँधती भी है और वीर्य को भी हर ले जाती है एवं खाँसी और उल्टी को भी दूर करती है।
छोटी इलायची -
हल्की होने के साथ शीतल और वातनाशक है। यह मुहं की दुर्गन्ध दूर करने के साथ पाचक भी है। यह चरपरी है और कफ नाश के साथ खाँसी बवासीर तथा मूत्र रोग में भी लाभ करती है।
मँगरैल -
यह गर्म होती है और वायु का नाश भी करती है। इसका उपयोग सोहाल ,मठरी ,पूरी ,नमकपारा ,आदि में अधिक उपयोग होता है।
मेथी -
मेथी का उपयोग पेट रोग में लोग अधिक करते हैं जबकि यह गर्म है फिर भी हार्ट समस्या ,बी. पी. एवं गठिया रोग तथा कमर की पीड़ा में भी लाभ करती है। यह पित्त की वृद्धि भी करती है। बल को बढ़ाती है.
प्याज -
कोइ भी चट -पटा आहार हो तो उसमें लोग इसका उपयोग अधिक करते हैं। यह गर्म तो है लेकिन पुष्टिकारक होने के साथ बल को बढ़ाती है। कफ को दूर तो करती है किन्तु वीर्य को भी बढ़ाती है। यह वात को नष्ट करके पित्त की भी वृद्धि करती है।प्याज पाक तथा रस में मधुर है एवं भारी और वायु को नष्ट करती है।
केशर -
केसर चिकना होता है वात -पित्त- कफ का नाश करता है ,यदि सर में पीड़ा हो या पेट में कीड़ा हो उसमे भी लाभ करता है, केसर की विशेशता यह है की यह चिकना और उत्तेजक है। झाई में लाभ के साथ वायु को दूर करता है और स्वाद में कड़वा होता है।
लहसुन----
लहसुन अधिक खाने से पसीना आता है और यह पंच रसात्मक है। गैस बनने पर इसको कच्चे रूप में खाने से अधिक लाभ मिलता है।
नमक ------
नमक गर्म होता है। साभर नमक बादी और कफ को दूर करता है तथा पाचक होता है।
पुदीना ---
पुदीना गर्मी के मौसम में शरीर में शीतलता लाने के लिए अति आवश्यक है क्योकि यह ठंढा होता है और पाचक है, और उलटी को रोकता है।
कस्तूरी----
कस्तूरी गर्म होती है और बल को बढाती है तथा लकवा और मसाने के रोग में लाभ करती है
केवड़ा ----
यह ठंढा होता है तथा मस्तिष्क को तर रखता है दिमाग और ह्रदय को पुष्ट रखता है तथा बेहोशी को दूर करने में और नेत्र ज्योति में लाभ करता है।
गुलाब -----
गुलाब ठंढा होने के साथ दस्तावर होता है यह बल को बढ़ाता है, हैज़ा में भी लाभ करता है और मेदा में भी लाभ करता है।
पान -----
पान दो प्रकार का होता है , एक खाकर निगलने वाला और दूसरा खाकर थूकने वाला होता है। जो निगलने वाला पान है उसमे लौंग ,इलायची ,सौफ ,मिश्री,केशर,चुना,आदि का प्रयोग करते है तो यह पान पाचन को सही रखता है और मुख की दुर्गन्ध को दूर कर मुख शुद्धि करता है। पान मेदा,जिगर,को बल देने वाला होता है और प्यास को रोकता है, वायु नाशक होने के साथ पेट में कीड़ा और कब्ज में भी लाभ करता है, गर्मी के मौसम में पान का शरबत सरीर की गर्मी को दूर करता है।
सिरका -
भोजन के साथ लोग आचार भी अधिक चाव से खाते हैं और आचार में यदि सिरका न हो तो किसी भी प्रकार का आचार हो वह बे स्वाद है। सिरका में एक विशेष अवगुण भी है ,यह वीर्य को फाड़ देता है। सिरका गर्म है और दस्त को रोकता है। यदि अधिक भोजन कर लिया हो तो भोजन करने बाद एक चम्मच सिरका और चार चम्मच पानी के साथ पी लेने से भोजन शीघ्र पच जाता है।यह बलवर्धक एवं भूख को बढ़ाता है। सिरका मन्द पाचन को भी दूर करता है।
कवाबचीनी
यदि कफ,वात और मुख की दुर्गन्ध दूर करना हो तो कवाबचीनी खाने से लाभ है। यह हल्की ,तीक्ष्ण ,गर्म होती है। कड़वी होने के साथ ह्रदय रोग में लाभ करती है और रूचि कारक भी है।
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