शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमारे ग्रंथों में 84 लाख योगासनों का वर्णन किया गया है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार 84 लाख जीव योनियां हैं और उन्हीं के आधार पर 84 लाख योगासनों को वर्णित किया गया है। योगासन के विषय में इस जगत में सर्वप्रथम भगवान हिरण्यगर्भ द्धारा प्रतिपादित किया गया है और बाद में श्री कृष्ण द्धारा इस धरा पर अन्य लोगों के माध्यम से आम जनमानस तक योगासन का लाभ महर्षि पातञ्जलि के कर-कमलों से विस्तृत रूप में लोगों को ज्ञात हुआ है।
आज जिस योगासन को लोग जानते हैं उसे पातञ्जलि जी ने प्रमुख रूप से जनमानस के बीच सहज और सरल ढंग से प्रस्तुत इस लिए किये कि आने वाले युगों -युगों तक मानव स्वस्थ और सम्पूर्ण निरोग रहकर अपना जीवन व्यतीत कर सके।
योग के विषय में आज से ही नहीं आदि से लोग योग को अपना कर करो योग रहो निरोग के जीवन आत्मसात किये हुए हैं। योग के माध्यम से ही ऋषी -महर्षि ईश्वर साक्षात्कार करने में सिद्ध हुए हैं।
किन्तु योग क्या है ?इसे समझना और फिर योग करना,सुनने में तो सरल है किन्तु करने में अवश्य कुछ कठिन है। योग के विषय में सनातन धर्म के अनेक ग्रंथों में योग क्या है ?योग ही जीवन है,इसके बारे में बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथ्य वर्णित हैं।
योग क्या है ? ----------(निम्न ग्रंथों के अनुसार )
योग याग्यवल्क्यं -जीवात्मा और परमात्मा की एकता का अनुभव करने का नाम योग है।
कठोपनिषद 6 -10 ,11 में और ऋग्वेद संहिता के 1 -18 -7 अध्याय में योग को केवल परमावश्यक बताया गया है।
योग बीज -इस ग्रन्थ में इतना वर्णित किया गया है कि "योग के बिना विद्वान का कोइ यज्ञ -कर्म सिद्ध नहीं होता है। योग के बारे में भगवान शंकर ने माता पार्वती से तो यहां तक कहा है कि हे प्रिये !कोइ विज्ञानी या देव भी योग के बिना मुक्ति नहीं पा सकता।
श्वेताश्वतर उपनिषद -इस उपनिषद के अध्याय 2 -12 में केवल योग जिसे प्राप्त हो उसे रोग ,बुढ़ापा नहीं होता है।
योगशिखोपनिषद -योगशिखोपनिषद का पूरा अध्ययन करने के बाद भी इसमें मात्र इतना ही लिखा है कि "जो योग जनता है उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं "
पतञ्जलि योग -यद्यपि योग के विषय में विश्व में बहुत सी पुस्तकें हैं ,किन्तु सर्व सुलभ एवं प्रमाणिक तथा विश्वसनीय पुस्तकों में यदि किसी पुस्तक की और योग के बारे में चर्चा होती है तो वह केवल पतञ्जलि योग ही पुस्तक है। आज जिस प्रकार से लोग योग को अपना नाम देकर और तरह -तरह से योगासन सीखा रहें हैं वास्तव में यह योग ,प्राणायाम,योगासन ,आदि सब महर्षि पतञ्जलि योग से ही है। इस पुस्तक के योग 1 -2 में वर्णित है कि चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है`https://hi.wikipedia.org/wiki
छान्दोग्योपनिषद -
इस ग्रन्थ के 7 -26 -3 वें अध्याय में योग के बारे में योग की अन्य पुस्तकों से कुछ अलग हटकर योग के विषय में बताया गया है कि आहार शुद्धि से सत्व की शुद्धि, सत्व की शुद्धि से स्मृति लाभ ,स्मृति लाभ से कैवल्य मोक्ष सुलभ हो जाता है "
शिव संहिता ----------
शिव संहिता ग्रंथ में नाड़ी शुद्धि होने पर शरीर बिलकुल सुडौल ,सुन्दर ,चमक ,हल्का ,फुर्तीला हो जाएगी।
सांख्य दर्शन ---------
सांख्य दर्शन में पतंजलि योग की तरह एक ही वाक्य में योग के विषय में यह दिया है कि प्रकृति व पुरुष का वियोग ही योग है।
स्कंदपुराण ----------
"मन का समाधिस्थ हो जाना ही योग है "इस पुराण में योग के बारे में इतना लिख देने से और सांख्य दर्शन में वर्णित योग का लेख भी पतंजलि योग के जैसा ही है।
अथर्व वेद -४ - १४ - ३ वे अध्याय में राजयोग की प्राणायाम प्रणाली की शक्ति का वर्णन किया गया है।
मनु स्मृति -(६-७१)मनु स्मृति के इस अध्याय में योग के विषय में केवल प्राणायाम का ही विशेष उल्लेख किया ग गया है।
भागवत गीता -६-११-१२ वें अध्याय में मात्र योगाभ्यास के लिए तो कहा गया है लेकिन इसी पुस्तक के ५-१९-१३ वें अध्याय में यह भी कहा गया है कि भगवान हिरण्यगर्भ ने योग की सबसे बड़ी कुशलता निर्गुण स्वरूप में चित्त लगाने को बताया है।
विष्णुपुराण -६/७/३६-८ वें अध्याय के सूत्र में केवल इतना ही वर्णन किया है कि "योग के अन्तर्गत जो यम-नियम होता है उसी के बारे में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
महाभारत -इस ग्रन्थ के शान्ति पर्व एवं अनुशासन पर्व में योग का वर्णन किया गया है और आगे यह भी बताया गया है कि सांख्य के वक्ता महर्षि कपिल हैं परन्तु योग के प्राचीन वक्ता हिरण्यगर्भ को बताकर योग के महत्त्व को बताया गया है।
श्री योगवासिष्ट -सभी पुस्तकों में योग के लिए कुछ अवश्य बताया गया परन्तु आध्यात्मिक योग का वर्णन इस पुस्तक में विशेष रूप से मिलता है।
चरक संहिता -अन्य ग्रंथों की अपेच्छा इस ग्रंथ में पतञ्जलि योग के समतुल्य मन को आत्मा -परमात्मा में लीन होने को योग कहा गया है।
रामचरितमानस -सनातन धर्म में इस ग्रंथ को पंचम वेद की संज्ञा दी गई है ,और इस पुस्तक के राम-लक्ष्मण जिज्ञासा में सुस्पष्ट योग का उल्लेख किया गया है।
याग्यवल्क्य स्मृति -भगवान हिरण्यगर्भ को ही इस ग्रन्थ में योग के वक्ता के रूप में बताया गया है और यह भी कहा गया है कि "योग के भगवान हिरण्य गर्भ से पुरातन कोइ वक्ता नहीं है "
कुछ धर्मों के अनुसार योग का उल्लेख -
हिन्दुधर्मानुसार -"तुम ही परमात्मा हो "जिसे तत्वमसि कहा गया है।
ईसाई धर्मानुसार -परमात्मा तुम्हारे हिर्दय में वास करता है।
इस्लाम के अनुसार -"हम परमात्मा की एक ज्योतोर्मयी किरण हैं "
नोट -उपर्युक्त धर्मों में योग से थोड़ा अलग हटकर आत्मा और परमात्मा के बारे में बताकर यह दर्शाया गया है कि किन्हीं दो का मिलना अथार्त आत्मा से परमात्मा के मिलन को ही योग कहा है।
कठोपनिषद -(१/३/१३)वें अध्याय के सूत्र में गया है कि -इन्द्रियों को मन में निरुद्ध करना ,वाक् आदि इन्द्रियों से हटाकर मन में विलीन करना ही योग है।
योग के विभिन्न आयाम -
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि योग के अर्थों में - वस्तुतः आज लोग जिस योग की बात करते हैं वह योग नहीं अपितु योगासन है। मात्र योगासन को ही योग नहीं कहा जा सकता है।
योग करने के लिए तो अष्टांग योग का पालन करना होगा ,किन्तु शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आठ योगों में से केवल तीन आयाम (आसन ,प्राणायाम ,ध्यान )का ही यदि अनुसरण किया जाय तो कैसा भी व्यक्ति क्यों न हो वह शारीरिक और मानसिक रूप से शत -प्रतिशत स्वस्थ होगा।
योग के लाभ -1 -योग करने से यदि शारीरिक और मानसिक रोग पूर्व से हो या वर्तमान में कोई रोग हो तो भी व्यक्ति रोग मुक्त हो जायेगा।
2 -रोग के अनुसार योग करना भी लाभप्रद है।
3 -यदि रोग न हो तो भी योग करने से आने वाले रोगों से मुक्त होंगे।
4 -योग के द्वारा किसी रोगी को भी रोगमुक्त कर सकते हैं।
5 -योग के माध्यम से कोसों दूर रह रहे रोगी को यहीं से ही रोगमुक्त कर सकते हैं।
6 -योग करने से मन से बुरे विचार स्वतः ही मिट जाते हैं।
7 -छल -कपट ,द्धेष ,ईर्ष्या ,दम्भ ,क्रोध ,पाप ,अहंकार आदि योग करने से ही नष्ट होते हैं।
8 -योग करने से किसी दूसरे के विषय में बिना बताये ही बहुत सी बातें ज्ञात हो जाया करती हैं।
9 -योग करने से शरीर हल्का ,और आरोग्य होने के साथ ही साथ मन से विषयों की लालसा भी मिट जाती है।
10 -जब योग किया जाता है तब उसके फलस्वरूप मुख और शरीर पर कान्ति और स्वर मधुर हो जाता है।
11 -योग में दृढ़ हो जाने पर व्यक्ति को मल -मूत्र अल्प मात्रा में होता है।
12 -जब योग के अधीन व्यक्ति हो जाता है तो किसी भी विषय को एक बार पढ़ लेने मात्र से ही एक ही बार में विषय कंठस्थ हो जाता है।
13 -योग करने से मन को वश में सहजता से किया जा सकता है।
14 -योग से ही कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों को वश में किया जा सकता है।
15 -योग कर के ही शरीर की सभी नसों के अंदर जमे मल को बाहर करते हैं। 16 -मानव कम से कम 7 -8 घंटे रात को सोता है ,लेकिन योग करने से सात-आठ घंटे की नींद केवल सात मिनट में पूरी कर सकते हैं।
17 -योग को जिसने सिद्ध कर लिया है वही व्यक्ति योग के माध्यम से प्राण चिकित्सा और दूरस्थ चिकित्सा कर सकता है।
योग का तीसरा आयाम -
प्राणायाम -योग क्या है ?इसके विषय में जो ऊपर बताया गया है उसी के अन्तर्गत यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण अंग है प्राणायाम ,किन्तु प्राणायाम करने के एक नहीं अपितु अनेक विधियाँ हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए निम्न प्राणायाम को अवश्य करना चाहिए।
नाड़ीशोधन ,अनुलोम-विलोम ,भस्त्रिका ,कपालभाती ,वाह्यप्राणयाम ,अग्निसार क्रिया ,आदि।
उपर्युक्त प्राणायाम करके शरीर और मन को स्वस्थ तो रख ही सकते हैं और जब पूर्ण रूप से प्राणायाम सध जाय तो प्राणायाम चिकित्सा तथा दूरस्थ चिकित्सा सफलता पूर्वक कर सकते हैं।
प्राण चिकित्सा -
इस विधि में साधक को कुम्भक का उच्च अभ्यासी होना आवश्यक है तभी किसी रोगी के पास बैठकर उसका रोगोपचार हो सकता है।
दूरस्थ चिकित्सा -
इसमें भी प्राणचिकित्सा जैसा ही है किन्तु इस विधि में रोगी का
उपचार करते समय यदि रोगी मीलों दूर हो तो भी रोग निदान हो सकता है।
स्वांश की लम्बाई -
जब मानव सांस छोड़ता है तो १२ अंगुल ,गाना गाते समय १६अंगुल ,भोजन करते समय २०अंगुल ,सोते समय ३० अंगुल ,मैथुन करते समय ३६ अंगुल ,एवं किसी प्रकार का व्यायाम करते समय ४०-५० अंगुल सांस की लम्बाई हो जाया करती है।
प्राणायाम महत्त्व -
यदि साधक तीन घंटे तक कुम्भक का अभ्यास कर सकता है तब अपनी प्राणवायु एक इंच अंदर रोक सके तो कहीं जाकर भविष्यवाणी की सिद्धि प्राप्त हो पाती है। इस प्रकार से एक-एक इंच और अंदर प्राणवायु को रोकने में जब समर्थ हो जाये तब आत्मा का परमात्मा से तादात्म्य स्थापित हो पाता है।
योग की पराकाष्ठा -
आज के सामान्य अर्थों में योग ,योगासन ,तक ही सिमित समझने लगे हैं लोग जब कि योग गूढ़ अर्थों में मानव को महामानव बनने में एवं ईश्वर के समीप लाने का नाम योग है।
केवल योगासन योग नहीं है और न ही प्राणायाम योग है अपितु जब तक ब्रह्मचर्य के साथ आसन और प्राणायाम अथवा अष्टांग योग का पालन नहीं किया जाता तब तक योग ,योग नहीं है।
योग किसके लिए -
जो व्यक्ति न अधिक भोजन करता हो और नहीं बहुत अल्प भोजन करता हो यह योग उसके लिये है।
जो न अधिक सोता हो और न अधिक जागता हो वह योग का अधिकारी है।
योग न किसी जाति के लिए है और न किसी धर्म के लिए है। योग तो सबके लिए है ,समस्त मानव जाति के लिए है।
योगासन और प्राणायाम कौन कर सकता है -
1 -यदि बच्चों को योगासन -प्राणायाम करना है तो दस वर्ष से नीचे के बच्चे न करें।
2 -दस वर्ष से ऊपर के सभी लोग योगासन -प्राणायाम कर सकते हैं।
3 --महिला -पुरुष अधिक वृद्ध हैं वह भी योगासन-प्राणायाम न करें।
4 -जो अधिक रोगग्रस्त हैं वह भी क्रिया करने से बचें।
5 -जो भी महिला-पुरुष आवश्य्क्ता से अधिक दुर्बल हैं वह भी न करें।
6 -पंखा ,कूलर ,A C आदि के नीचे कोई भी क्रिया कदापि न करें।
7 -गर्मी के दिनों में धूप में से आकर तुरन्त ही योगासन या प्राणायाम करना वर्जित है।
8 -सर्दी के दिनों में आग या हीटर की गर्मी के बीच भी नहीं करना चाहिए।
योगासन -प्राणायाम करने में सावधानी -
1 -उक्त क्रिया एक ही दिन में पूर्ण करने की चेष्टा न करें।
2 - नमी युक्त और सीलन युक्त स्थान न हो।
3 -दोनों क्रिया समय भूमि समतल और हवादार होना चाहिए।
4 -कोई भी योगासन या प्राणायाम हठपूर्वक न करें।
5 -कोई भी क्रिया करें तो भोजन के आठ घंटे बाद या प्रातः खाली पेट करें।
6 -यदि महिलाओं को मासिक धर्म हो तो उस समय योगासन और प्राणयाम न करके पांच दिन बाद से करना शुरू करें।
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