नाड़ी शोधन प्राणायाम करना उतना ही आवश्यक है जितना कि अपने शरीर के लिए योगासन। जैसा कि इसके नाम में ही इसका गुण छिपा है नाड़ी +शोधन अथार्त शरीर की समस्त 72000 नाड़ियों को प्राण वायु द्धारा शोधन (शुद्ध करना )करना। योग +आसन मिलकर जब योगासन होता है तब उसी योगासन के पश्चात प्राण +आयाम अर्थात प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न की जाती है। प्राणायाम में नाड़ीशोधन क्रिया अतिमहत्त्वपूर्ण क्रिया है जिसको करने का उचित ढंग निम्न प्रकार है।
प्राण की शक्ति को प्राण वायु द्धारा(प्राणायाम के माध्यम से ) एकत्र करके इसकी असीम ऊर्जा को आत्मसात करके चेतना की अन्तस गहराइयों में उतरकर और ध्यानस्थ होकर अनंत शक्ति की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।
प्राणायाम भी सहज सध नहीं पाता है ,इसके लिए भी पहले सरल और सहज ढंग से किसी एक आसन में निश्चल स्थिर होकर और सम स्थिति में बैठकर पूरक (श्वांस लेना )और रेचक )श्वांस बाहर करना )का अच्छा अभ्यास करने के बाद सर्वप्रथम नाड़ीशोधन PRANAYAMकरना चाहिए जिसकी विधिवत प्रक्रिया नीचे दी जा रही है।
नाड़ीशोधन की प्रथम क्रिया (15 दिन हेतु )-
पद्यासन ,सुखासन ,सिद्धासन ,या किसी भी आसन में सुखपूर्वक बैठकर सबसे पहले शरीर को 10 -15 मिनट शिथिल होने दें और सांस लेने तथा छोड़ने के समय किसी प्रकार की ध्वनि न होने दें।
अब बायाँ हाथ घुटने पर रखकर ,दायें हाथ के अंगूठे से नाक का दाहिना स्वर बंद करके बाएं नासा छिद्र से पूरक करें और इसी से तुरंत ही रेचक क्रिया - (पूरक =सांस लेना ,रेचक =सांस छोड़ना )इस प्रकार से कम से कम 5 बार करने के बाद अब बायां नासा छिद्र बंद करके इसके विपरीत दायां स्वर से 5 बार पूरक और रेचक क्रिया करना चाहिए।
निर्देश -5 बार इस प्रकार से की गई क्रिया की 1 आवृत्ति होती है ,और इस प्रकार से कम से कम 20 -25 आवृत्ति पूर्ण करना है।
उपर्युक्त क्रिया जब 15 दिन भली-भाँति हो जाय तब सोलहवें दिन से दूसरी क्रिया प्रारम्भ करें।
नाड़ीशोधन क्रिया दूसरी -(15 दिन हेतू ) इस क्रिया में दांयां स्वर बंद करके बायां स्वर से पूरक करें और तुरंत ही बायां स्वर बंद करके दायां नासा से रेचक करें 1 आवृत्ति ,और अब बायां नासा बंद कर के दायां नासा से पूरक करें तथा बायां स्वर से रेचक करें 1 आवृत्ति। इसकी कुल 20 -25 आवृत्ति करें।
नाड़ीशोधन की तीसरी क्रिया -(15 दिन हेतू )
नाक का दाहिना स्वर बंद करके अब बाएं स्वर से पूरक करें और बाएं स्वर को तुरंत बंद कर अब दोनों नाक का छिद्र बंद कर लें और सहन होने तक कुम्भक (सांस को अंदर रोकें )करके दाएं स्वर से रेचक क्रिया कर दें।
अब तुरंत ही बाएं छिद्र को बंद कर के दाहिने छिद्र से पूरक कर लें और अब सहन होने तक सांस को रोके रहें (कुम्भक करें )और बाएं नासा से रेचक क्रिया कर दें। (इस प्रकार से की गई क्रिया की एक आवृत्ति होती है )तथा इस तरह से कम से कम 25 आवृत्ति की क्रिया होनी चाहिए।
15 -20 दिन तक जब करते -करते यह अभ्यास अच्छी तरह होने लगे तब इसमें पूरक ,कुम्भक, रेचक का निम्न प्रकार के सूत्र से पालन करें -
सूत्र एक -जैसे कि एक गिनती गिनने तक पुरक करें +दो गिनती गिनने तक तुरंत ही कुम्भक करें +और दो ही गिनती गिनने तक तुरंत ही रेचक करें (1 +2 +2 )किसी भी सूत्र को गिनती या सेकेण्ड का पालन करते हुए करना है।
सूत्र दो -जब उपर्युक्त क्रिया सध जाय तब इस सूत्र में थोड़ा परिवर्तन करते हुए इस प्रकार से आगे बढ़ते हैं -छः गिनती तक पूरक +बारह गिनती तक कुम्भक +बारह गिनती तक रेचक (6 +12 +12 )करना है।
सूत्र तीन -जब यह भी क्रिया अच्छी तरह से सध जाये तब सूत्र 1 +6 +2 के सूत्र से क्रिया सधने तक पूरक +कुम्भक +रेचक करना है।
सूत्र चार -कुछ दिन तक ऊपर लिखित सूत्र अच्छी प्रकार जब होने लगे तो सूत्र 1 +6 +4 के अनुसार एक पूरक छह कुम्भक और चार रेचक करें।
सूत्र पांच -जब सूत्र चार भी सहज ढंग से होने लगे तब सूत्र 1 +8 +6 से पूरक +कुम्भक +रेचक करना है।
निर्देश - सूत्र पांच तक की क्रिया करने के लिए प्र्तेक सूत्र का पालन 15 दिन तक करने के बाद तब नाड़ीशोधन प्राणायाम की चौथी क्रिया करना है।
नाड़ी शोधन क्रिया चौथी -(15दिन हेतू ) इस प्रक्रिया में इड़ा (बायां स्वर )से पूरक करने के बाद तुरंत ही कुम्भक सहज स्थिति तक करें ततपश्चात पिंगला (दाहिने स्वर से रेचक )से रेचक करते ही तुरंत ही बाहर पूरी सांस को सहज स्थिति तक रोकना है (वाह्य कुम्भक )और अब साँस रोकने के तुरन्त बाद ही उसी पिंगला से पूरक करें तथा पूरक समाप्त होने पर सांस को अंदर ही रोक लें (आंतरिक कुम्भक करें )लेकिन सहज एवं सामान्य स्थिति तक ही सांस रोकना है। आन्तरिक कुम्भक करने के तुरन्त बाद ही बाएं नासा से रेचक कर देना है तथा रेचक करते ही बाहर को सांस रोकना है सहज एवं सामान्य स्थिति तक।
निर्देश -जब 15 -15 दिन क्रिया करते हुए 60 दिन में चारों क्रिया पूर्ण हो जाय तब केवल चौथी क्रिया को जीवन पर्यन्त करना चाहिए।
इस प्रकार से अपनायी गई प्रक्रिया द्धारा किया गया नाड़ीशोधन प्राणायाम की एक आवृत्ति होती है (जैसे कि इस सूत्र से -1 गिनती तक पूरक +4 गिनती तक आंतरिक कुम्भक +2 गिनती तक रेचक +2 गिनती तक वाह्यकुम्भक )
जब सहजता से इस सूत्र का पालन होने लगे तब इसकी 25 आवृत्ति तक कम से कम करना चाहिए।सध जाने पर इसकी आवृत्ति को सूत्र के अनुसार बढ़ाना चाहिए किन्तु धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाना है।
विशेष निर्देश -नाड़ीशोधन प्राणायाम योगआसनोपरान्त और ध्यानाभ्यास के पूर्व ही करना चाहिए। यदि मात्र ध्यान कर रहे हैं तब ध्यान से पूर्व करना है और यदि योगासन कर रहे हैं तब योगासन के बाद नाड़ीशोधन करना है।
नाड़ीशोधन से लाभ -
1 - नाड़ीशोधन की चारों क्रिया को सफलता पूर्वक करने से नया -पुराना कब्ज में लाभ है,2 -डायबिटीज में लाभ ,3 -रक्तचाप उच्च या निम्न हो दोनों को नियंत्रित करना ,4 -किसी भी प्रकार का मानसिक तनाव हो उसमे लाभ ,5 -यदि बहुत अधिक नींद आती हो या नींद बिल्कुल न आती हो ,6 -शरीर की समस्त रक्तवाहिनी इस प्राणायाम के करने से स्वच्छ होती हैं7 - ,रक्त में जितने भी दूषित मल वर्षों से जमे पड़े हैं वह मल बाहर निकलता है8 - शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन तेजी के साथ मिलता है एवं CO 2 का अच्छी प्रकार से निकलना 9 -फेफड़ा स्वच्छ हो जाता है और फेफड़े की शक्ति में वृद्धि होने लगती है 10 -कैसा भी उच्च रक्तचाप हो उसको सदा-सदा के लिए समाप्त कर देना 11 -इस प्राणायाम के करने से शरीर पर कान्ति आ जाती है 12 -.मष्तिष्क ,नाक ,कान, गला ,फेफड़ा ,उदर ,एवं उदर के अंदर सभी संस्थान को अतिरिक्त ऑक्सीजन देकर पूर्व के रोगों को नष्ट करना तथा आने वाले नए रोगों को दूर कर देना।
नाड़ीशोधन प्राणायाम करने में सावधानी -
1 -यह प्राणायाम करते समय स्थान शुद्ध होना चाहिए ,
2 -यदि इस प्राणायाम को शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए शरद ऋतु से प्रारम्भ करना सर्वोत्तम है।
3 -यदि अभ्यास समय साँस अनियमित हो तब अभ्यास करते समय अभ्यास में कुछ अल्पविराम (कुछ सेकेण्ड रूककर )देने के बाद गहरी सांस लेकर थोड़ा समय विश्राम करना चाहिए। (प्राणायाम करते समय यदि कोई भी स्वर अच्छे से न चल रहा हो तो जिस स्वर को चलाना है उसके विपरीत दिशा में 15 -20 मिनट लेटने से स्वर स्वतः ही चलने लगता है। )
4 -जब अभ्यास समाप्त कर लें तब धीरे-धीरे गहरी सांस लेकर और धीरे-धीरे गहरी सांस छोड़कर अभ्यास से उठें।
5 -अभ्यास समाप्त करने के बाद कम से कम बीस मिनट शवाशन अवश्य करें।
नाड़ी शोधन प्राणायाम निर्देश -
1 -प्राणायाम करने के पूर्व आँत ,मूत्राशय ,जठर भली -भाँति रिक्त होना चाहिए।
2 - भोजन करने के कम से कम चार -पांच घण्टे बाद ही प्राणायाम करे।
3 -योगासन के बाद तथा ध्यान के पहले योगासन किया जाता है।
4 -किसी भी प्राणायाम को करते समय शरीर को शिथिल रखना चाहिए।
5 -कुम्भक करते समय सहन होने तक ही कुम्भक किया जाय।
6 -प्राणायाम जब प्रारम्भ किया जाता है तब इसकी प्रारम्भिक स्थिति में अपच ,मूत्र की मात्रा में कमी , हो जाय तो प्राणायाम तीन -चार दिन या छह -सात दिन बंद कर देना चाहिए।
7 -यदि अभ्यास करने के कुछ दिन बाद यदि मल कड़ा होने लगे तब मसाला ,मिर्च, नमक को छोड़ देना चाहिए।
8 -अभ्यास के समय यदि मल पतला होने लगे तब अभ्यास को कुछ दिन बंद कर के चावल एवं दही को सेंधा नमक के साथ खाना चाहिए।
9 -प्राणायाम अभ्यासी को सदैव उत्तेजक आहार लेने से बचना चाहिए।
10 -कोई भी प्राणायाम या योगासन करते समय एक आसनी बिछाकर उसी पर करना हितकर है।
11 -प्राणायाम यदि किसी रोग के शमन के लिए करना है तब प्राणायाम कभी भी प्रारम्भ कर सकते हैं।
12 -यदि प्राणायाम को सिद्ध करना चाहते हैं तब इसके लिए वसन्त ऋतु या शरद ऋतु से प्रारम्भ करना है।
प्राणायाम में निषेध (जो नहीं करना है )-
1 -जो अभ्यासी अन्तर्कुम्भक का अच्छा अभ्यास न किये हों उन्हें वाह्यकुम्भक हठपूर्वक नहीं करना है।
2 -किसी भी प्रकार का प्राणायाम करते समय खुले बदन ,बन्द कक्ष या कम प्रकाश वाले कक्ष में न करें।
3-नदी या समुद्र के किनारे भी प्राणायाम न करें।
4 -धूप तेज हो या तेज धूप में से आकर प्राणायाम न करें। 5-पेड़ के नीचे भी किसी प्रकार का अभ्यास निषिद्ध है।
6 -हिर्दय रोगी और जिनका बी,पी ,लो या हाई हो उनको किसी भी प्रकार का कुम्भक तब तक नहीं करना है जब तक कि अपने रोग को ठीक न कर लें।
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