वर्तमान समय में प्र्तेक व्यक्ति किसी न किसी रोग से पिड़ित अवश्य है। रोग होने का एक नहीं अपितु अनेक कारण भी है। लोगों का रहन-सहन एवं आहार-विहार आज कई रोगों को जन्म दे चुका है ,उनमें से आज हाई ब्लड प्रेसर भी एक विकट समस्या है। आज के समय में यह आवश्यक नहीं रह गया है कि मात्र वृद्ध व्यक्ति को ही यह रोग होता हो अपितु 30 वर्ष के पश्चात ही लोग हाई बी पी के शिकार हो रहें हैं।
हाई-बीपी होने का विशेष कारण ------
1-यदि किसी भी कारण से किडनी का रोग हो।
2 -किसी भी प्रकार का हिर्दय रोग से हिर्दय में कोई विकार हो गया हो।
3 -किन्हीं भी रूप में व्यक्ति मानसिक समस्या से ग्रस्त हो।
4 -ब्लड्यूरिन बढ़ने के कारण भी बी पी का रोग हो जाता है।
5 -नमकीन ,तला-भुना ,मीठा ,अधिक खाने से।
6 -अल्कोहल एवं धूम्रपान करने से भी होता है।
7 -महिला या पुरुष के स्वास्थ्य का सामान्य से अधिक मोटा होना।
8 -किसी को थायरॉइड हुआ हो तो भी यह रोग हो सकता है।
9 -जीवन शैली यदि अनियमित हो गयी हो।
10 -परिवार में पहले से ही कोई बी पी का रोगी रहा हो।
11 -शुगर अथवा हॉर्मोन समस्या के होने से भी हाई बी पी होता है।
12 -यदि क्रॉनिक किडनी की समस्या हो गई हो। किन्तु यह बीपी की सेकेंडरी स्टेज के अन्तर्गत लिया जाता है।
आज की भाग-दौड़ में लोग इतना व्यस्त होते जा रहें हैं कि अपने खान-पान का ध्यान ही नहीं रख रहे। जब जहां ,जो भी मन में आया वही घास -भूषा की तरह तला-भुना और जंक फूड आदि पेट भर कर खा ले रहें हैं। इस खान -पान के कारण शरीर में दैनिक नमक की मात्रा एक -दो ग्राम से बढ़ कर दस ग्राम से भी अधिक हो जा रहा है जो कि बी पी बढ़ने का यह भी कारण बनता जा रहा है।
दैनिक जीवन में अत्यधिक महत्वाकांक्षा की भूख भी मानव जीवन को डिप्रेसन का शिकार बना रही है और लोगों की बी पी हाई होती चली जा रही है।
यद्यपि हाई बी पी होने के एक नहीं अनेक कारण भी हैं ,किन्तु किसी भी कारण से उच्च रक्तचाप हो जाये यदि समय रहते इसके विषय में जागरूक होकर कुछ उपाय कर लिया जाय तो आने वाले अनेक गम्भीर रोगों से बचा जा सकता है।
उच्चरक्तचाप का लक्षण ---------------
1- सिर में भारीपन का होना।
2 -आँख से धुँधला दिखाई पड़ना। यह तब होता है जब बीपी अधिक हाई हो।
3 -अधिक बीपी होने से शरीर में झनझनाहट भी होती है।
4 चक्कर ,या सिर में दर्द भी होता है।
5 -अनिद्रा होना या ,घबराहट होने के कारण भी यह रोग होता है।
6-मूत्र मार्ग से खून का आना ,या नाक से रक्त का आना ,एवं सीने में दर्द भी होता है।
7 -सिर में चक्कर आकर उल्टी भी हो सकती है।
8 -अधिक बीपी हाई होने से लकवा ,या किडनी पर दुष्प्रभाव या हार्ट को भी
यह डैमेज कर देता है।
यदि हाई बी पी की समस्या हो जाये तब भी और न हो तो भी सर्वप्रथम प्रातः समय दैनिक क्रिया से निवृत्ति होने के पश्चात शवाशन कम से कम 20 मिनट अवश्य करना चाहिए shvaasna और कम से कम तीन -चार सप्ताह करने के बाद कुछ निम्न योगासन करना चाहिए। शवासन के साथ बीस मिनट अनुलोम -विलोम anulom vilom प्राणायाम करने के बाद कुछ योगासन पांचवें सप्ताह से करें।
लेटकर किया जाने वाला योगासन -------------
1 -पवनमुक्तासन ----जब शवासन और अनुलोम-विलोम कर लें तब पीठ के बल लेटकर ही धीरे-धीरे साँस अन्दर भर लें और एक पैर को घुटने से मोड़ कर और दोनों हाथों से घुटने को पकड़ कर अपने सीने की ओर लेकर जाएँ तथा अपनी साँस मन्द गति से छोड़ते हुए अपनी नाक को मुड़े घुटने से सटाकर सहन होने तक साँस रोके रहें और धीरे-धीरे सांस लेते हुए अपने घुटने को फैलाकर सामान्य होने तक साँस लेने के पश्चात इसी प्रकार से दूसरे पैर से भी कर लें ,तथा जब दूसरे पैर से कर लें तब दोनों पैर से एक साथ करने से यह पवनमुक्तासन की क्रिया पूर्ण होगी और इस प्रकार से दो-चार बार करने के बाद ही दुसरा योगासन करें।
2 -उत्तानपादासन -पीठ के बल ही लेटकर सीधा रहें और दोनों पैर भी फैला रहे एवं दोनों पैर लकड़ी की भाँति कड़ा कर के रखें तथा दोनों पैर सटाकर रहें एवं इसी स्थिति में मन्द गति से साँस अन्दर जब भर लें तो दोनों सटे पैर को भूमि से लगभग एक फुट ऊपर उठाकर तब तक उठाये रखें जब तक सहन हो सके। अब धीरे-धीरे साँस छोड़ते हुए उठे हुए दोनों पैर भूमि पर वापस लाएं और सामान्य होकर इसी प्रकार से तीन-चार बार यही क्रिया करें। यदि दोनों पैर से करने में किसी प्रकार की कठिनाई हो तो एक-एक पैर से यही अभ्यास तीन-चार बार करते रहें।
योगासन प्राणायाम निर्देश -
1 -शवासन करने के बाद जब उठें तो शवासन खत्म करते ही पहले शरीर में हल्का सा कंम्पन दें तब बाएं हाथ पर बल देकर बाएं हाथ के सहारे से ही उठें।
2 -अनुलोम विलोम प्राणायाम करते समय सांस लेते व छोड़ते समय किसी प्रकार से साँसों में आवाज न हो इसका ध्यान रखें।
3 -पवनमुक्तासन करते समय जब एक पैर से करें तो उस समय दुसरा पैर बिलकुल सीधा और कड़ा करके रखें।
4 -उत्तानपादासन यदि एक पैर से करें या दोनों पैर से किन्तु पैर एकदम सीधा और कड़ा रखें।
5 -योगासन प्राणायाम करने के तीस मिनट बाद ही किसी प्रकार का आहार या पेय लेना चाहिए।
दोनों योगासन करने के बाद बीस मिनट शवासन पुनः करके ही उठें। जब चार सप्ताह तक शवासन एवं अनुलोम विलोम करने का अभ्यास हो जाये तब उक्त दोनों योगासन इकतीसवें दिन से करना चाहिए।उपर्युक्त योगासन के साथ क्रमशः मन्द गति से कपालभाती प्राणायाम कम से कम पन्द्रह-बीस मिनट यदि किया जाय तो अल्प समय में ही उच्चरक्तचाप को नियंत्रित कर सकते हैं।
उच्चरक्तचाप रोगी का भोजन --------
प्रातः -प्रातःकाल दैनिक क्रिया से निवृति होकर एवं योगासन -प्राणायाम करने के पश्चात कोई भी मौसमी फल बिना रस वाला जैसे अमरुद ,पपीता ,ककड़ी ,खीरा ,सेब ,शकरकंद,अन्नानास आदि एक सौ ग्राम से लेकर एक सौ पचास ग्राम तक लेना चाहिए। अँकुरित मूँग ,चना ,गेहूँ या जौ का दलिया ,एक कप हो और साथ में बिना मलाई का दूध एक गिलास ले लेना चाहिए।
दोपहर -इस समय भूख के अनुसार रोटी ,सलाद ,हरी पत्ते वाली सब्जी या सब्जी का सूप ,कोई भी दाल जो पसन्द हो ,चावल एवं साग आदि लेना चाहिए।
सायं -रूचि के अनुसार मटर ,चना ,मूँगफली ,या केवल सलाद अथवा बिना तला हुआ आवश्यक्तानुसार थोड़ा सा लेना चाहिए।
रात के समय -दिन भर कुछ न कुछ खाने के कारण इस समय तो जितनी भूख हो उससे कम ही बिना तेल मसाला या कम से कम तेल -मसाला युक्त आहार अपनी रूचि के अनुसार अवश्य लें।
निर्देश -
1 -बीपी अचानक बढ़ जाय या बीपी के रोगी ही क्यों न हों इसमें भोजन करने के एक घंटे के बाद ही जल पीना चाहिए और सदैव जल अधिक से अधिक पीते रहना चाहिए। ऐसा करने से उच्चरक्तचाप नियंत्रित रहता है।
2-
परहेज ---
1-एल्कोहल और निकोटीन युक्त कोई भी पेय या आहार न लें,जैसे चाय ,कॉफी ,धूम्रपान,मदिरा आदि।
2 -अधिक चिकनाई वाला आहार जैसे मांस ,अंडा ,मक्खन ,घी आदि।
3 -लाल मिर्चा ,आचार ,चटनी ,गर्म मसाला आदि।
4 -अधिक देर तक कोई कार्य न करें और न हीं अधिक समय तक जागने की कोशिश करें।
5 -इस रोग में चावल भी कम से कम खाएं तो अधिक अच्छा है।
उच्चरक्तचाप का अन्य घरेलू उपचार ----
1- गौमूत्र -गाँव हो या शहर कहीं भी देशी गाय या देशी गाय की बछिया हो तो उसका प्रातःकाल का तजा गौ मूत्र पचास मिली० खाली पेट पीना चाहिए।
2 -बेल पत्ती -बेल की चार -पांच पत्ती लेकर इसी का काढ़ा या इसे चबाकर ऊपर से गुन-गुना जल पीएं।
3 - सेंधा नमक -अपने आहार में सदैव इसी नमक को खाएं।
4 -नीबू -पानी - गर्मी के मौसम में दिन भर में कम से कम चार बार नींबू पानी अवश्य लें ,किन्तु एक बार में आधा नींबू का रस एक गिलास पानी में लें।
5 -पपीता पत्ती - घर के आस -पास यदि पपीता का पेड़ हो तो इसी के पत्ते का रस सबेरे-सायं एक चम्मच लेना लाभ प्रद है।
6 -मेथी दाना - घर में सदैव उपलब्ध रहने वाला मेथी का दाना को रात में एक चम्मच लेकर एक गिलास पानी में भींगा कर रखें और प्रातः यही दाना चबा कर के इसका भींगा हुआ जल ऊपर से पी लेने से लाभ तो करता है किन्तु शरीर यदि पित्त प्रधान है तो मेथी का दाना बिलकुल खाना भी नहीं चाहिए।
7 - प्याजरस -प्याज दो प्रकार की होती है एक लाल और एक सफेद। यदि सफेद प्याज हो तो ठीक है नहीं तो लाल ही प्याज का तीन चम्मच रस प्रातः खाली पेट लेने से (गुन -गुना जल में मिलाकर लें तो अधिक ठीक है )हाई बीपी तो नियंत्रित रहता ही है और हिर्दय में ब्लॉकेज है तो उसे भी खोल देता है। इतना ही नहीं यदि हिर्दय में कोलेस्ट्रॉल या वसा जमा हो अथवा जमने वाला हो तो उसे जमने नहीं देता है। वसा और कोलेस्ट्रॉल यदि धमनी में भी हो तो उसे भी वहां जमने नहीं देता है।
8 - शहद -दालचीनी -एक गिलास गुन-गुना जल में सम मात्रा में दालचीनी और शहद को एक चम्मच लेकर पीना भी अधिक लाभ करता है।(आधा चम्मच दालचीनी+आधा चम्मच शहद =एक चम्मच )
9 - आम पत्ता -आम का पेड़ तो बहुत है किन्तु देशी आम का पेड़ हो तो अधिक अच्छा है ,इसी के लालरंग के मुलायम पत्ते का रस एक -एक चम्मच प्रातः और सायं ले सकते हैं अथवा इसी पत्ते को सुखाकर एक चम्मच चूर्ण कर के लें।
10 - अर्जुन छाल -अर्जुन की छाल जो इस पेड़ के जड़ के तरफ वाली छाल हो उसे ही पचास ग्राम हरी छाल का एक कप जल में काढ़ा बनाकर दोनों समय लें या इस छाल को सूखा कर और चूर्ण कर के एक कप पानी में काढ़ा बनाकर दोनों समय लें ।
11 - सहजन -शरीर में बहु गुणी पोषण को पूरा करने वाला सहजन वृछ की फली या इसके पत्ते को छाया में सूखा कर इसी का चूर्ण बनाकर आधा चम्मच भोजन के बाद लेना हितकर है। इस पत्ती का चूर्ण या इसके फली का रस दिन में केवल एक ही बार लेना चाहिए। इस फली को उबाल कर या सब्जी बनाकर भी ले सकते हैं।
12- लौकी रस -लौकी का रस भी प्रातः समय खाली पेट तुलसी ,धनियां ,काली मिर्च ,पुदीना को पांच -पांच पीस डालकर एक कप दिन में एक बार ले तो अच्छा है।
13 - मर्म चिकित्सा -अपने दोनों हाथ के कनिष्ठिका अंगुली के पास वाली अंगुली का प्रथम पोर यदि दो से पांच मिनट दबाएं और पैर की भी यही अंगुली दबाने के साथ कपालभाती करने से शीघ्र ही लाभ होता है।
सावधानी -----
1 -इस प्रकार के रोगी को योगासन तब करना चाहिए जब शवासन और अनुलोम -विलोम प्राणायाम का कम से कम तीस दिन अभ्यास हो जाय उसके पश्चात ही करें।
2-प्राणायाम एवं शवासन एक माह का पूरा करने के बाद जब जाँच करवाने पर रक्तचाप एक सौ पचास सिस्टोलिक से अधिक रहे तब रक्तचाप सामान्य होने तक केवल शवासन और प्राणायाम ही करना चाहिए और योगासन नहीं करना चाहिए।
3 -जब रक्तचाप सामान्य हो जाय तब भी योगासन के साथ -साथ शवासन और प्राणायाम का अभ्यास करते रहना है।
4-यदि महिला इस रोग से पीड़ित हो तो मासिक धर्म और गर्भावस्था के समय केवल योगासन बन्द कर देना चाहिए। प्राणायाम व शवासन करते रहना चाहिए।
5 - गौ मूत्र लेते समय यह ध्यान रखें कि गाय चार माह की गर्भिड़ी हो जाय तो उसका मूत्र न लें और जब गाय बच्चा जन्म दे दे तो जन्म देने के तीन माह बाद का मूत्र लें।गौ मूत्र सदैव सूती कपड़े का आठ तह बनाकर उससे छानकर ही पियें।
विशेष निर्देश ----
उपर्युक्त उपचार हाई बीपी और हिर्दय रोग दोनों में अधिक लाभ दायक है। इस रोग में पूर्ण रूप से रात में सदैव भरपूर नींद अवश्य लेना चाहिए और कोई भी मौसम हो किन्तु दिन में न सोएं तो अधिक लाभ है।
किसी भी प्रकार की चिंता या घबराहट से बचना चाहिए और हार्ट या बीपी के रोगी को कोई ऐसी बात न बतायें जिससे रोगी व्यक्ति अनावश्यक चिंताग्रस्त रहने लगे।
2 टिप्पणियाँ
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ReplyCost of IVF in Pakistan 2022 - The selected motile sperms (Approx. 1,50,000-2,00,000) are added to the Petri dishes containing matured eggs.
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