नवदुर्गा के नौ रूप [शक्ति का प्रतीक ]

प्रशेर पर सवार दुर्गा साहस और वीरता का प्रतीक हैं सभी बुरे विचारों और बुरी शक्तियों से हमारी रक्षा करती हैं,.यही दुर्गा शक्ति का मूल तत्व हैं।माँ दुर्गा का अष्टभुजा रूप मानव के अंदर छिपी आठ प्रकार की शक्तियों का तिनिधित्त्व करता है। मानव के पास शरीर का बल ,धन का बल ,मन का बल ,कर्म का बल ,और वचन का बल ,माता -पिता के आशीर्वाद का बल ,अपने गुरु का बल,एवं ईश्वरीय कृपा बल ,से जनकल्याण हेतु समय-समय पर अपनी शक्तियों को मूर्त रूप देने का प्रतीक है। 
                 माँ शारदा का यह शारदीय नवरात्र नौ दिन व्रत (संकल्प )लेकर शुचिता के साथ विधि-विधान से श्र्द्धा ,आस्था ,विश्वास ,के साथ  मानव अपने जीविकोपार्जन के साथ -साथ कर्म-पथ से च्युत न होकर सदैव धर्म को अंगीकार कर के भावी जीवन-पथ पर अग्रसर होता रहे। 
    नवदुर्गा का नवरूप नौ बुराइयों को नष्ट करने का भी प्रतीक है। मानव तन में रहते हुए अपनी और दूसरों की दुष्प्रवृत्तियों को नष्ट करने का भी यह प्रतीक है। सिंह पर सवार माँ का स्वरूप यह भी प्रेरणा देता है कि माँसाहारी पशु होते हुए भी सिंह माँ दुर्गा के नियंत्रण में रहकर भी जब तक माँ की आज्ञा न हो तब तक वह किसी भी प्रकार से किसी की हानि नहीं करता और जब अवसर एवं आज्ञा पा जाता है तो दुष्ट प्रवृत्तिओं को सदैव के लिए नष्ट कर देता है उसी प्रकार से मानव को भी आज्ञा और अवसर के अनुसार ही समाज से आसुरी शक्तियों को नष्ट करने की प्रेरणा का यह सिंह भी प्रतीक है। 
                                    जब नौ दिन व्रत रहकर दशवें दिन  कुआँरी कन्याओं का पूजन -अर्चन के बाद नवान्हपारायण कराया जाता है तो यह इस बात का प्रतीक है कि कन्याओं के मान-सम्मान से ही परिवार सुख-सम्मृद्धि की ओर आगे बढ़ सकता है। यदि एक कन्या को सुखी रखा जाता है तो एक परिवार पूर्ण रूप से समृद्धिशाली होता है।
                    शेर पर सवार दुर्गा का रूप इस बात का प्रतीक है कि जिस प्रकार से शेर हिंसक होते हुए भी बिल्कुल शान्त रहकर और अवसर पाते ही अपने लक्ष्य को भेद देता है उसी प्रकार व्यक्ति को भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति को समेट कर रखना चाहिए तथा अवसर मिलने पर बुरी शक्तियों का समूल नाश कर देना चाहिए। एक हिंसक पशु को माँ शारदा ने अपनी सवारी बनाकर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि बुरे से बुरे व्यक्ति को भी अपनी समझ और शक्ति से नियन्त्रित किया जा सकता है।  
             शेर शक्ति का प्रतीक है और शक्ति की डोरी माँ अष्टभुजा के बलिष्ट हाथों में शरीर और शरीरी की भाँति एक सूत्र में बँधी है। इसी प्रकार से जनमानस को भी एकता के सूत्र में बाँध करदुष्ट प्रवृत्तिओं का नाश किया जा सकता है।                                                                                                                          
                                                                                                                                                                                                                                                        दुर्गा के नौ रूपों में शैलपुत्री  -शैल अथार्त पत्थर ,ब्रह्मचारिणी  -ब्रह्म अथार्त अनंत तथा चर्य अथार्त चलना अथार्त अनंत में चलना।चन्द्रघण्टा   -चंद्र अथार्त चंन्द्रमा जो बुद्धि का प्रतीक है और घंटा अथार्त सतर्कता का प्रतीक है। घंटे की ध्वनि मस्तिष्क को वास्तिविकता में ले जाती है जो मस्तिष्क के अस्थिर होने पर जब चेतना संघटित होती है तो मस्तिष्क एक स्थान पर केंद्रित होता है ,इससे मस्तिष्क की ऊर्जा में वृद्धि के साथ मस्तिष्क सतर्कता से हमारे नियंत्रण में रहता है।कूष्माण्डा  -कुम्हड़ा या सीताफल जो अनेक बीज युक्त है। एक-एक बीज नवीन सीताफल का सृजन करता है ,अथार्त ब्रह्माण्ड की सृजनात्मक शक्ति और शाश्वत प्रकृति का प्रतीक है। कुष्मांडा में 'कु 'अथार्त छोटा तथा 'ष 'अथार्त ऊर्जा। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ऊर्जा से व्याप्त है। अथार्त सूक्ष्म से विशालतम तक। यह सन्देश देता है कि हमारे भीतर भी शक्ति सूक्ष्म से विशालतम है जो हमें अपनी ऊर्जा से' सृजन'का सन्देश देता है। पाँचवाँ रूप स्कन्दमाता  -स्कन्द अथार्त ईश्वर सुब्रमण्यम की माता। स्कन्द को 'देवी 'के 'गोद 'में शेर पर सवार होने का अर्थ है कि यह 'साहस और करूणा का प्रतीक है। स्कन्द अथार्त कुशल। हम ज्ञान के सहयोग से ही कुशल कार्य कर सकते हैं। इसलिए कठिन व विषम परिस्थिति में हम ज्ञान से ही समस्या का समाधान करते हैंतो 'स्कन्द 'अथार्त कुशलता प्रकट होती है।                                                                                           
 छठां रूपकात्यायनी  का -देवताओं के क्रोध से उत्पन्न रूप ही देवी 'का कात्यायनी'रूप है। क्रोध के दो गुण हैं ,एक अच्छा क्रोध -एक बुरा क्रोध। अच्छा क्रोध अथार्त बुद्धि से सम्बंधित और बुरा क्रोध अथार्त भावना और स्वार्थ से सम्बंधित है। जो अच्छा क्रोध नकारात्मक शक्ति और अन्याय मिटाने का सन्देश देता है यही 'कात्यायिनी का प्रतीक है। सप्तम रूपकालरात्रि  -'काल 'अथार्त समय 'रात्रि 'अथार्त 'पूर्व विश्राम '.ज्ञान और तटस्था प्राप्त करने के लिए शरीर ,मन ,और आत्मा के स्तर पर आराम। 'कालरात्रि 'विश्राम के पश्चात दीप्तिमान का प्रतीक है।                  अष्ठम रूप महागौरी  -अथार्त निष्कपट ,प्रतिभा का मिश्रण है। इसमें ज्ञान ,गमन की प्राप्ति और मोक्ष का प्रतीक है। नवम रूप सिद्धिदात्री  का है -अथार्त सिद्धि प्रदान करना और सफलता प्राप्त करना। किसी भी कार्य को सिद्ध कर पूर्ण सफलता अथार्त सिद्धि का प्रतीक है।   
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