हनुमान के अनेक नाम कैसे ?
ॐ हनुमतेय नमः
हनुमान जी के बहुत से नाम हैं ,लेकिन इनके नामकरण के पीछे कुछ न कुछ विशेष गुण या विशेष अर्थ के कारण ही हनुमान जी को अनेकों नामों से जाना जाता है। हनुमान जी के यह नाम कैसे? व किस कारण से हैं? उसके विषय में कुछ ज्ञानवर्धन करते हैं।
https://hi.wikipedia.org/wiki/ hanuman
हनुमान नाम का अर्थ ------------
ह ---ब्रह्म ,शिव ,आनंद ,आकाश ,एवं जल का द्दोतक है।
नु ----पूजा ,प्रसंसा ,प्रार्थना ,का द्दोतक है।
मा ---लक्ष्मी ,और विष्णु का द्दोतक है।
न ---महाबली रूप का द्दोतक है।
ह ---ब्रह्म ,शिव ,आनंद ,आकाश ,एवं जल का द्दोतक है।
नु ----पूजा ,प्रसंसा ,प्रार्थना ,का द्दोतक है।
मा ---लक्ष्मी ,और विष्णु का द्दोतक है।
न ---महाबली रूप का द्दोतक है।
माता अंजनी के नाम पर -
अंजनिपुत्र ,अंजनिसुत ,आञ्जनेय,अंजना लाल ,
पिता केसरी के नाम पर -
केसरी नन्दन ,केसरी पुत्र ,केसरी सुत ,
शिव की आत्मा से उतपन्न होने के कारण -ईशात्मज
शिव के प्रिय होने से -ईश्वरलाल ,
रूद्र के अंश हैं हनुमान जी इसलिए -रूद्र ,रुद्रांश ,रुद्रावतार ,उग्रजात ,उग्र ,
उमापतिअंश ,कामेशनन्दन ,गिरिजापति सुत ,गिरिशवत्स ,गंगाधर लाल ,गौरीपतिसुत ,चन्द्रचूडात्मज ,चण्डिकेश्वर कुमार ,त्रिलोचन तनुज ,नीलकंठ सुत ,नीललोहित सुवन ,भर्ग कुमार ,भीमतनय ,महाकाल पुत्र ,महारुद्र्सुत ,महेशसुवन ,योगेश्वर नंदन ,शंकर सुवन ,व्योमकेशसुत ,शंभुसुवन ,श्री कण्ठनंदन ,
माता पार्वती के नाम पर -
देवों के देव महादेव और माता पार्वती के नाम से भी हनुमान जी को कई अन्य नामों से जाना जाता है -
गिरिजासुत ,गौरीसुत ,उमासुत ,
वायुदेव के नाम से हनुमान जी का नामकरण -
पवनसुत ,पवनतनय ,मारुतसुत ,मारुति ,कामसुत ,ऋतवाहनंन्दन ,वातजातं ,वायुपुत्र ,एवं हनुमान नाम इंद्र से युद्ध में हनुमान जी की ठुड्डी टूटने के कारण हनुमान के नाम से नामकरण हुआ।
हनुमान जी के नामों में हनुमान जी के गुण और कार्य के आधार पर भी अन्य कई नामों से जाना जाता है -जैसे -----------------
अतिलघुरूप धारी ,अतिबल वीरा ,असुर निकंदन ,कञ्चनवरन,कपीश ,कपीश्वर ,ज्ञानगुणसागर ,दानवदलन ,भानुभक्षक ,भीम रूप,नाम रघुपतिवरदूत ,रामदूत ,रामदुलारे ,संकटहरण ,संकटमोचन ,विद्यावान ,
हनुमान जी का शरीर सोने के समान चमकदार और पर्वत के समान बहुत बड़ा शरीर होने के कारण पर्वताकारा और श्वर्णशैलाभदेहं भी नाम है।
ज्ञानियों में अग्रगन्य होने से ज्ञानिनामग्रगण्यम हैं हनुमान जी।
मन के समान तेज गति से चलने के कारण मनोजव नाम से जाने जाते हैं।
वीरों में श्रेष्ठ होने से हनुमान जी महावीर के नाम से भी विख्यात हैं।
जब सूर्य को राहु ग्रहण करने के लिये गया तो उस समय राहु को सूर्य ग्रहण करने से हनुमान जी ने रोक दिया और तभी राहु ने हनुमान के पुरे परिवार और अंजन प्रदेश को पूरी तरह विध्वंस करने का संकल्प लिया। जिस समय राहु हनुमान के कुटुम्ब को तहस -नहस कर रहा था उस समय हनुमान जी भगवान सूर्य के सरंक्षण में अष्टसिद्धि की प्राप्ति हेतु शिक्षा ग्रहण कर रहे थे इसलिए हनुमान जी अपने परिवार की सुरक्षा करने में असमर्थ थे।
हनुमान जी की अनुपस्थिति में राहु ने माता अंजना और उनके पिता केसरी को अनेकों प्रकार से घोर कष्ट दिया। राहु इतना निरंकुश और निष्ठुर होकर उन लोंगो को कष्ट दे रहा था कि धर्म और अधर्म क्या है?इसकी चिंता किये बिना ही पापकर्म करता रहा।
भानु -भास्कर भगवान सूर्य से शिक्षा ग्रहण के समय ही सूर्य, हनुमान जी को वापस अंजन -प्रदेश जाने की आज्ञा दिए और हनुमान जी जब वापस आये तब उन्हें सम्पूर्ण घटनाक्रम की जानकारी हुयी। " यहाँ तक कि राहु के प्रकोप से माता अंजना को मृत्यु दण्ड तक का सामना करना पड़ा और केसरी के साथ दास बनकर जीवन व्यतीत करने पर विवश होना पड़ा। "
उक्त घटनाओं की जानकारी होने पर हनुमान जी,राहु को दण्डित किये और राहु कायर की भाँति त्रिदेवों {ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश ,}की शरण में गया। त्रिदेवों ने भी राहु की सहायता करने से मना कर दिया। राहु सम्पूर्ण जगत से सहायता माँगता रहा और अष्टग्रहों से भी सहयोग के लिए कहा परन्तु किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की, तब हनुमान जी ने त्रिदेवों की संयुक्त शक्ति से बजरंग बाण को निर्मित करके राहु को शक्ति विहीन कर दिया और उसे सदेह रूप में धरा पर सामान्य मानव की भांति रहने पर विवश कर दिया। राहु ने जिस-जिस प्रकार से और जितना-जितना कष्ट अंजन प्रदेश और हनुमान के माता-पिता को दिया था उसी प्रकार से राहु को भी इस वसुंधरा पर अपने कर्मों का दण्ड भोगना पड़ा। हनुमान ने माता अंजना के हस्तक्षेप से राहु को पुनः उसकी शक्ति को वापस करके नौ ग्रहों के बीच देवत्त्व प्रदान किया। राहु ने उसी समय संकल्प लिया कि"अब से जगत के किसी भी प्राणी को कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं नहीं दूँगा " राहु के प्रकोप से सम्पूर्ण मानव जाति को मुक्ति देने हेतु इसी बजरंग बाण से राहु को दण्डित किये।
मानव मुक्ति हेतु बजरंग बाण के निर्माण के कारण ही हनुमान जी का नाम बजरंग बली ,बजरंगी ,बजरंग ,नाम से प्रसिद्ध हुए।
हनुमान जी के चरित्र ,जन्म ,पूजा ,आदि के विषय में अनेक ग्रंथों में बहुत से तथ्य वर्णित हैं जो इस प्रकार हैं -----------------
अग्निपुराण -------
इस पुराण के 8 वें अध्याय में राम और हनुमान जी की भेंट का पम्पासर नामक स्थान पर वर्णन किया गया है। अग्निपुराण में ही हनुमान जी मूर्ति बनाने का भी वर्णन किया गया है।
ब्रह्मपुराण ---------
ब्रह्मपुराण के पैशाचीतीर्थ में हनुमान जी के जन्म के विषय में लिखा गया है। इसी पुराण के 129 वें अध्याय में फेना एवं गौतमी नदी की महिमा का वर्णन प्रमुखता से किया गया है। हनुमान जी को वृषाकपि भी इसी पुराण में कहा गया है एवं ऋग्वेद में भी यही वर्णन किया गया है।इस पुराण में हनुमान और वृषाकपि के एक ही होने का वर्णन स्पष्ट रूप से किया गया है।
शिवपुराण ------------
इस पुराण के 20 वें अध्याय में हनुमान जी के जन्म से लेकर बालय्काल तक का वर्णन तथा शिव को पुत्र के रूप में हनुमान जी को बताया गया है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण ---------------
ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्री कृष्ण जन्म खंड में रामचरित्र और हनुमान जी के चरित्र के बारे में संक्षेप में लिखा गया है।
विष्णुपुराण ,मत्स्यपुराण,वायुपुराण ---------------
उक्त तीनों पुराणों में श्री राम की कथा संक्षेप में तो मिलती है किन्तु" वायुपुराण "में वानरों की लम्बाई और चौड़ाई का ही वर्णन किया गया है।
स्कंदपुराण -------------
स्कंदपुराण के" सेतुमहात्मय "प्रकरण 2 -1 -106 भाग तीन में पंपातीर पर राम और हनुमान के भेंट का वर्णन किया गया है। इसी पुराण के ही वैष्णवखण्ड में माता अंजना के द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए तप का भी वर्णन किया गया है। हनुमान जी द्वारा रामेश्वरम में शिव लिंग लाने का विवरण भी इसी पुराण में मिलता है।
स्कन्द पुराण के ही पृ 0 463 -466 में विवरण दिया गया है कि विभीषण की प्रार्थना पर हनुमान जी उस पुल को काट देते हैं जिस पुल से होकर लंका पर चढ़ाई राम ने किया था.
कृतिवास रामायण -------------------
इस रामायण के अनुसार हनुमान को भरत जी शत्रुघन के बाल्य्काल में खेलने वाले बांटुल धनुष (80 मन) के ऊपर बाण चढ़ाकर मारते हैं।
कूर्म पुराण -------------
कूर्म पुराण में रामचरित्र और हनुमान चरित्र का संक्षेप में कथा तो मिलती है लेकिन इस पुराण में राम और हनुमान के भेंट की भी कथा वर्णित है।
गरुणपुराण --------------
राम और हनुमान की भेंट के विषय में इसमें भी संक्षेप में ही कथा लिखी गयी है।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण ---------------
नंदी द्वारा रावण को श्राप देने की कथा और कुशध्वज की कन्या वेदवती द्वारा रावण को श्राप देना और वेदवती ही सीता के रूप में जन्म लेने का वर्णन भली -भाँति किया गया है। इसी पुराण के 219 वें अध्याय में रावण के जन्म के विषय में कथा का वर्णन मिलता है।
श्री मदभागवत -----------------
हनुमान के विषय में संक्षेप में और राम चरित्र की कथा श्री मदभागवत के 9 वें स्कन्द के 10 वें 11 वें अध्याय में कथा का वर्णन हुआ है।
पद्यपुराण -----------------
हिन्दुओं के पद्यपुराण (जैनियों का पद्यपुराण नहीं )के पाताल खंड में भगवान श्री राम के विषय में राम के अयोध्या लौटने से एवं दूसरे अध्याय में राम जी हनुमान को अयोध्या में भरत का समाचार लेने के लिए ही कथा के विषय में बताया गया है।
पद्यपुराण के ही पातालखण्ड के 36 वें अध्याय में राम चरित्र की पूरी कथा दी गई है लेकिन हनुमान की कथा इसमें संक्षेप में दी गई है। इस पुराण में राम -रावण युद्ध 18 दिन हुआ है ऐसा वर्णन किया गया है। इस पुराण में यहाँ तक लिखा गया है कि किस-किस तिथि में कौन -कौन सी घटना घटित हुयी है।
कलिकपुराण -------------------
कलिकपुराण के तृतीय अंश के तृतीय अध्याय में राम चरित्र के बारे में कथा मिलती तो है परन्तु इसमें यह भी लिखा गया है कि राम और हनुमान की भेंट ऋष्यमूक पर्वत के समीप हुयी है।
नरसिंह पुराण ----------------------
रामावतार और शिव तथा अन्य वानर रूप में पृथ्वी पर अवतरित होने एवं राम और हनुमान की कथा का उल्लेख इस पुराण में किया गया है। नीलमत पुराण ही एक ऐसा पुराण है जिसमें हनुमान के चरित्र के विषय में कुछ नहीं कहा गया है,अन्य जितने भी धर्म ग्रंथ हैं सब में लगभग कुछ न कुछ अवश्य कहा गया है।
नारदीयमहापुराण ----------------------
हनुमान के मन्त्र ,यंत्र ,मूर्ति के विषय में इस पुराण में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।
भविष्य पुराण ---------------------
रावण और हनुमान के जन्म का वर्णन इसमें तो किया ही गया है तथा इसी पुराण के 131 वें और 132 वें ब्राह्मपर्व में सभी देवताओं के प्रतिमा बनाने के बारे में उल्लेख किया गया है।
कालिका पुराण --------------------
हनुमान के चरित्र के बारे में इस पुराण में कुछ तो नहीं लिखा गया है किन्तु राम के चरित्र का उल्लेख संक्षेप में किया गया है।
नारद पुराण --------------------
हनुमान जी का मंत्र क्या है ?और हनुमान जी के पूजा की विधि क्या है ? इस पुराण में विस्तृत ढंग से दिया गया है। इसी पुराण में हनुमान को ब्रह्म रूप बताकर एवं शिव और विष्णु के संयुक्त शक्ति के प्रतीक भी बताये गए हैं एवं गान विद्या का पंडित भी हनुमान जी को बताया गया है।
अगस्त संहिता -------------------
हनुमान जी की मूर्ति बनाने का निर्देश और राम लक्ष्मण सीता के साथ राम की सेवा करते हुए दिखाने का इसमें निर्देश दिया गया है। अगस्त संहिता के श्लोक संख्या 34 में हनुमान की आकृति शंख ,चक्र सहित राम के मंदिर के द्धार पर बनाने का संकेत तो दिया गया है किन्तु अगस्त संहिता की हस्त लिखित प्रति में दिया गया है। इसी संहिता के श्लोक 35 -37 में राम के मंदिर में हनुमान की मूर्ति बनाने का उल्लेख किया गया है।
" कुर्यादेवालयम रम्यं सर्वनेत्रोतस्वं यथा
प्र( ा )कारं कारयेतत्र चतुर्गोपुरसंयुतम -35
पीतं रम्यं प्रकुव्रीत शिलायां चोन्नतोन्नते
हस्तदवशाय तं कुर्याच्च्तुरस्रं सुशोभनम -36
अग्रभागे हनुमतं पीठस्त विनिवेशयेत
पीठशुद्धि प्रकुव्रीत वक्ष्यमाणविधानतः -37
श्री तत्वनिधि -----------------
इस ग्रंथ के सुदर्शन संहिता में हनुमान के पंचमुखी हनुमान के विषय में लिखा गया है।
सुदर्शन चक्रराज संहिता -------------------
हनुमान के षट्कोण यंत्र और इस यंत्र के पूजन तथा यंत्र से सर्व फल प्राप्ति के बारे में उल्लिखित है।
शिव महापुराण -------------------
हनुमान की माता को गौतम की पुत्री इस पुराण में कहा ही गया है और हनुमान को शिव के वीर्य से उतपन्न होना बताया गया है।
बंगीय महाभागवत पुराण व वृह्धर्म पुराण ------------------
हनुमान जी जब लंका पहुँचते हैं तो वहां की देवी (दुर्गा )को उपस्थित पाते हैं एवं उनसे लंका को छोड़ने का निवेदन करते हैं। हनुमान के निवेदन पर देवी लंका को त्याग देती हैं। हनुमान जी द्धारा इस प्रकार के कृत्य का उल्लेख इसी पुराण में मिलता है।
अध्यात्म रामायण -----------------
हनुमान जी को माता जानकी जी का पता "लंका "ही बताती है। इसी रमायण के 3 -11 सर्ग सुन्दरकाण्ड के अनुसार रावण गधों के रथ में राम से युद्ध करने का वर्णन किया गया है।
बृहद्धर्मपुराण --------
हनुमान स्वयं शिव है इस पुराण के अठ्ठारहवें और 20 वें अध्याय में स्पस्ट रूप से दिया गया है।
बृहद्धर्मपुराण --------
हनुमान स्वयं शिव है इस पुराण के अठ्ठारहवें और 20 वें अध्याय में स्पस्ट रूप से दिया गया है।

2 टिप्पणियाँ
Click here for टिप्पणियाँइसमें कुछ और लिखें तो ठीक है
ReplyHnuman ke bare mein kuch aur likhen .
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