शुद्ध सरसों तेल के नाम पर बाजार में अनेक ब्रांड के तेल मार्केट में छाए हुए हैं,जब कि जनसँख्या अधिक है और उत्पादन कम है फिर भी बाजार तेल से भरा है। दादा-दादी के समय से ही उत्तर भारत में या और भी कई पीढ़ी से सरसों का तेल ही इस लिए खाते आ रहें हैं कि यह तेल ,तेल तो है ही आयुर्वेदिक औषधि भी है। फोड़ा -फुन्सी के शुरुआत में हल्का गर्म कर लगाना ,हल्का कट जाय या छिल जाय तो गर्म कर लगाना ,सर्दी-जुकाम हो तो हल्का गर्म कर नाक में डालना ,कानमें फंगस या मैल हो तो बिना गर्म किये ही डालना ,सिर में बराबर लगाने से सिरदर्द जाता है और बाल भी सैदव काला रहता है,हाथ -पैर में बराबर मालिश करने से शरीर की पीड़ा दूर होगी। लेकिन शुद्ध सरसों तेल की पहचान यह है कि इसमें झार कम आएगी ,,गर्म करने पर झाग नहीं बनेगी ,और किसी पात्र में भरकर यदि ठंड में भी रख दिया जाय तो सरसों का तेल जमता नहीं है। जबकि मिलावट वाला सरसों का तेल अधिक ठण्ड में जमने लगता है।
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