अयोध्या में भगवान श्रीराम का प्रकरण जो पिछले 40 दिन से भारत की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई चल रही थी ,इस प्रकरण का निर्णय माननीय सर्वोच्च अदालत ने अब सुरक्षित कर लिया है। अब निर्णय जो भी होगा दोनों पक्षकारों में से एक के पक्ष में होगा और दूसरे के विपक्ष में होगा। यद्यपि श्रीराम पूरी मानवता के आदर्श हैं। परन्तु यह शदी की सबसे लम्बी लड़ाई के रूप में इसलिए जानी जाएगी क्यों कि भगवान् श्रीराम के जन्मभूमि से संबंधित यह विवाद का विषय बना नहीं अपितु बनाया गया। आज से ही नहीं अपितु इस विवाद की नींव मीरबकी ने 1528 में तब डाल दी जब हमारे सांस्कृतिक पुरुष भगवान श्रीराम के जन्मभूमि को ध्वंस कर के उसी स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था। हमारे देश में और भी स्थान थे जहाँ पर कि वह अपने समुदाय के लिए अपने आध्यात्मिक उद्देश्यों को मूर्त रूप दे सकता था ,लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। क्यों कि मुगलों ने केवल दो समुदायों को आपस में लड़ाने हेतु और अपना साम्राज्य विस्तार हेतु ऐसा किया था।
केवल अयोध्या में श्रीराम के मंदिर को ही तोड़ा नहीं गया बल्कि हमारे देश में सनातन धर्म के हजारों -हजारों मंदिर को तोड़ दिया गया। इन कुछ हजारों मंदिरों में काशी ,मथुरा ,और अयोध्या का मंदिर कुछ प्रमुख मंदिर हैं जिन्हें तोड़ा गया। मुग़ल आक्रांता सनातन धर्म के लिए आततायी थे। यदि वह आततायी न होते तो इन मंदिरों के स्थान से २-४-६-१० किलोमीटर की दूरी पर भी अपनी मस्जिद बना सकते थे ,लेकिन उन्होंने ऐसा न कर के अपनी कुत्सित मानसिकता का परिचय दिया।
आज जब सर्वोच्च अदालत में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन श्रीराम जन्मभूमि के अस्तित्व काल्पनिक कहते हैं तो हिन्दू संस्कृति ,हिन्दू सभ्यता और हिन्दू आस्था पर गहरी-से गहरी चोट देने का कार्य किये हैं। विश्व के अन्य धर्मों इस्लाम ,ईसाई ,बौद्ध ,सिख ,यहूदी ,आदि धर्मों के उपसना स्थलों को काल्पनिक कहने का किसी में या उनके अस्तित्व को नकारने का साहस किसी में है। कोई भी व्यक्ति यदि ऐसा दुःसाहस करेगा तो ना जाने उस देश में कितनी बार सुनामी आएगी और पूरा विश्व जलने लगेगा। इस लिए राजीव धवन जैसे लोग अपनी गुलाम मानसिकता का बोध कराते हुए अदालत में जब श्रीराम जन्मभूमि के मानचित्र को फाड़ते हैं तो अपने विक्षिप्तता का परिचय देते हैं।
134 वर्षों से यह प्रकरण अदालत में इसलिए चलता रहा कि यहां के राजनेता भी आततायी हो गए क्यों कि ये लोग अपनी वोट की राजनीती करने लगे। दोनों पक्षों के धर्मगुरुओं ने अपनी धर्म की दुकान चलाने लगे। जब कि पुरातत्व की खुदाई में मिले मंदिर के अवशेष चिल्ला -चिल्ला कर कह रहे हैं कि श्रीराम जन्मभूमि यहीं है ,फिर भी श्रीराम जन्मभूमि के अस्तित्व को चुनौती देना केवल विवाद को बनाये रखना चाहते हैं। अपनी दुकान चलाने वाले लोग अपनी दुकान के असतित्व को मिटता देख रहे हैं, इसलिए इस प्रकार भाषा बोल रहे हैं। अब निर्णय चाहे 20करोड़ मुसलमानों के पक्ष में हो या 108 करोड़ हिन्दुओं के पक्ष में आये ,एक पक्ष जीतेगा और एक पक्ष हारेगा ही। न्यायालय की मेधा ,प्रज्ञा पर अब सबको विश्वास करना चाहिए। यदि यह विवाद हल हो जाता है तो धार्मिक गुरूओं की दुकान तो बंद हो ही जाएगी साथ ही साथ राजनितिक ध्रुवीकरण भी बन्द हो जाएगा। सच तो यह है कि इस विवाद के हल हो जाने से मानवता के आदर्श पुरूष श्रीराम और विश्व इतिहास में साम्प्रदायिक सौहार्द्य और धार्मिक सौहार्द्य का एक उदाहरण होगा।

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