"गुड़" में गुण ही गुण है

अक्टूबर - नवम्बर से नया गन्ने का  "गुड़" आना शुरू हो जाता है लोग गुड़ को  डिब्बे में बंद कर के रख देते है।  परन्तु वर्षा ऋतु आने पर गुड़ में कीड़े पड़ जाते हैं , जबकि गुड़ जितना पुराना होता है उसमे उतना ही औषधीय गुण  बढ़ जाता है।  सर्दी - जुकाम में , कांटा चुभने पर , हार्टपेसेंट आदि को पुराने गुड़ की ही आवश्यकता पड़ती है। गुड़ जब भी रखे तो डिब्बे में बंद करके रखे या बैग व बोरी में मुँह बांधकर रखे।  जब भी रखे तो रखने का स्थान भूमि के संपर्क या नमी के संपर्क में न हो। जब भूमि या नमी के संपर्क में गुड़ नहीं रहेगा तो वह गुड़ दस  साल तो बिलकुल भी ख़राब नहीं होता है।  यदि बार -बार रखने और उसका मुँह खोलने में सावधानी रखी  जाय तो दस वर्ष से अधिक  तक गुड़ को सुरच्छित रखा जा  सकता है।  उसमे किसी प्रकार का विकार भी पैदा नहीं होगा। स्वभावतः गुड़ का रंग थोड़ा काला तो होगा परन्तु गुड़ सदैव सुरच्छित रहेगा।
                                यही गुड़ सर्दी -जुकाम होने पर पानी पिने के बाद २५-३० ग्राम चूसना या खाना  चाहिए। यही गुड़ कांटा चुभ जाने पर गेहूँ  के चोकर के साथ मिलाकर कांटा चुभे स्थान पर बांध देने से कांटा निकल जाता है। यही गुड़ सुखाकर चूर्ण करके रख लें तो चीनी का प्रयोग करने की आवश्यकता ना के बराबर रह जाती है। यही गुड़ 25 -30 ग्राम खाली पेट खाकर पानी पी लें तो पाचन तंत्र सबल रहता है और शरीर में फॉस्फोरस की मात्रा सम रहती है। यद्यपि बाजार में कई प्रकार के गुड़ हैं ,परन्तु गन्ने का ही गुड़ सबसे अच्छा है। यदि बाजार के गुड़ का रंग हल्का पीला हो  या हल्की सफेदी का रंग हो तो वह गुड़ केमिकल युक्त गुड़ है जो स्वास्थ्य के लाभ में कम और हानिकारक अधिक है। इसलिए गुड़ जब भी खरीदें तो जो गुड़ स्वभावतः साँवला रंग {हल्का कला या लोहू रंग }या हल्का लालिमायुक्त हो तो वही गुड़ खाना सबसे अच्छा है। 
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