शंखप्रक्षालन क्रिया
योगासन और प्राणायाम के साथ शरीर की शुद्धि के लिए लोग अनेक प्रकार से भिन्न -भिन्न यत्न करते हैं किन्तु शरीर की शुद्धि फिर भी ढंग से नहीं हो पाती है। जब प्राणायाम में नाड़ी शोधन क्रिया किया जाता है तब केवल नाड़ी की शुद्धि होती है ,इसी प्रकार शरीर की शुद्धि के लिए भी कुछ षटकर्म किये जाते हैं उनमें से एक है शंखप्रक्षालन।
शंखप्रक्षालन शरीर को पूर्ण शोधन करने की एक यौगिक क्रिया है।
षटकर्म भी छःप्रकार के होते हैं और इसीलिए इसका नाम ही षटकर्म रखा गया है। इन छह क्रियाओं में विशेष शंखप्रक्षालन क्रिया है।
शंखप्रक्षालन क्रिया करने के पूर्व तैयारी -------------------
1 -इस क्रिया को करने से पहले रात में मूंगदाल की पतली खिचड़ी खाना चाहिए।
2 -रात्रि भोजन करने के 9 से 12 घंटे बाद प्रातः उठकर 4 -5 लीटर पानी गुन -गुना कर के उसमें एक नींबू का रस और एक चम्मच नमक डाल कर रखना चाहिए और तब निम्न प्रकार क्रिया प्रारम्भ करना चाहिए।
3- क्रिया के एक दिन पूर्व रेचक औषधि लेना चाहिए जैसे त्रिफला चूर्ण आदि।
शंखप्रक्षालन के पाँच योगासन ----------------------
प्रातः नित्य क्रिया (शौच )करने के पश्चात सर्व प्रथम उक्त दो गिलास गुन -गुना पानी उंकड़ू बैठकर पीना है और तब साँस अंदर भरकर और अपने पैरों के पंजे पर खड़ा होकर दोनों हाथ ऊपर करके(हाथ ऊपर तानते समय यदि हाथ के दोनों पंजे को आपस में फंसाकर किया जाय तो अच्छा है )ऊपर की ओर स्वयं को तान देना ही TADASAN ताड़ासन क्रिया है और अब हाथ नीचे लाते हुए साँसों को छोड़ देना है। इसी प्रकार से यह आसन चार बार करना है उसके बाद दूसरा आसन करें।(यह आसन करते समय दोनों पैर आपस में सटे रहें )
प्रथम आसन के पश्चात दूसरा आसन ------------
त्रियक ताड़ासन --------- जिस प्रकार से प्रथम आसन में खड़े हैं उसी तरह खड़े होकर और हाथ की स्थिति भी उपर्युक्त आसन जैसी ही रखते हुए अब दोनों सटे पैर में दो फ़ीट की दूरी देकर खड़े हो जायं तथा अब हाथ को पहले की तरह ऊपर की ओर रखते हुए ही साँस अंदर भरकर पहले दाएं ओर कमर की तरफ झुकना है और झुक कर(आगे की ओर नहीं झुकना है) सामान्य सांस लेते रहें तथा यह भी ध्यान देना है कि इस स्थिति में भी दोनों पैर व दोनों हाथ बिल्कुल सीधा रहे।
TIRYAK TADASANA अब सांस लेते हुए हाथ सीधा ही रहे और दोनों हाथ तने हए स्थिति में ही हाथ ऊपर की ओर लाएं और सामान्य सांस लेते रहें।
अब पुनः सांस अंदर भरकर बाएं ओर कमर से झुकें तथा हाथ और पैर बिल्कुल सीधा और तना होना चाहिए। सामान्य श्वांस लेते रहें। अब पहले जैसी स्थिति में हाथ ऊपर करते हुए जायं। इस तरह से एक बार बाएं और एक बार दाएं झुक कर करने से यह आसान एक बार हुआ। इसी प्रकार से इस आसन को चार बार करना है।(निम्न लिंक में केवल शंखप्रक्षालन क्रिया देखें
तीसरा आसन कटिचक्रासन -------------------
जिस प्रकार से दूसरा आसन करते हुए खड़े हैं उसी प्रकार खड़े रहते हुए ही केवल दोनों हाथ सामने की ओर फैलाकर और सांस अन्दर भरकर खड़े -खड़े ही केवल कमर से पहले दाएं ओर जितना घूम सकते हैं उतना घूम जायँ और सांस छोड़ दें।(कमर से घूमते समय अपने हाथ सहित घूम जाना है और हाथ सीधा भी करे रहना है। ) अब सामान्य सांस लेकर पुनः यही क्रिया बाएं ओर से इसी प्रकार करना है। बाएं और दाएं तरफ करने से एक बार यह क्रिया हुई और इस प्रकार से चार बार इसे भी करना है।
चौथा आसन त्रियक भुजंगासन --------------------------
पेट के बल सीधा लेटकर और दोनों पैरों में एक से दो फ़ीट की दूरी देकर तथा दोनों हाथ के पंजे को अपने दोनों कंधे के नीचे रख कर अब सांस अंदर भरकर अपनी गर्दन उठाकर पीछे मोड़कर तिरछा दूसरे पैर देखना है।
(जिस दिशा में गर्दन घुमाना है उसकी विपरीत दिशा वाले पैर की एड़ी या पंजा देखना है। )एक दूसरे के विपरीत क्रम से एड़ी देखते हुए इसे भी चार बार करना है। वापस आते समय धीरे -धीरे श्वांस छोड़ देना है।
पांचवां आसन उदराकर्षण -------------
इस आसन को करने के लिए उंकडूँ बैठना है (जिस प्रकार से पारम्परिक रूप से बैठकर शौच करते हैं उसी प्रकार बैठना है )अब बैठने की स्थिति में दोनों पैरों में एक फुट का अंतर देकर और हो सके तो पंजे के बल बैठें एवं पुरे शरीर का भार दोनों एड़ी पर हो। जब बैठ जायँ तो दोनों घुटना खड़ा होना चाहिए। अब बायाँ हाथ बाएं घुटने पर और दायां हाथ दाएं घुटने पर रख लें। सांस अंदर भरकर पहले दाएं घुटने को बाएं पैर के पंजे से स्पर्श कराएं और सांस छोड़ दें (इस स्थिति में बायां घुटना खड़ा किये रहना है तथा जिस दिशा में पैर मुड़े उसी दिशा में अपनी गर्दन भी मोड़ना है। )और सामान्य सांस लेने के बाद इस घुटने को पुनः अपने स्थान पर लाएं ,और इसी प्रकार से अब बाएं खड़े घुटने को दाएं पैर के पंजे के पास स्पर्श कराएं एवं सांस छोड़ दें। सामान्य साँस लेते रहें और पुनः इसी प्रकार से यह क्रिया चार बार करना है( जिस घुटने को स्पर्श कराना है उसे अपने हाथ से दबाव देकर स्पर्श कराना है और इस समय दूसरा घुटना खड़ा किये रहना है। )
जब इस प्रकार से पाँचों आसन चार -चार बार कर लेते हैं तो कुछ समय बाद स्वतः ही शौच का दबाव मालूम होगा और तब शौच जाना चाहिए। यह क्रिया केवल एक बार ही करना है और जिनको कब्ज पुरानी हो तो इसे प्रतिदिन शौच जाने के पूर्व या शौच जाने के बाद भी कर सकते हैं।
विशेष -------जिन लोगों को अपना विवन्ध (कब्ज )एवं पेट सही रखना है वह लोग प्रतिदिन प्रातः केवल नमक,नींबू ,पानी शौच जाने से पूर्व( दो गिलास जल) पीकर और केवल एक बार पाँचों आसन करें(एक आसन चार बार ) तब शौच जायँ और फिर जैसे अपनी दिनचर्या में रहते हैं वैसे अपनी दिन चर्या बिताएं।
ध्यान योग में शंखप्रक्षालन निर्देश -----------------------
उपर्युक्त एक-एक आसन को जब चार-बार किया जाता है तब एक आसन की क्रिया पूर्ण होती है,इस प्रकार से पाँचों आसन की क्रिया करने के बाद ध्यानाभ्यासियों को चाहिए कि निम्न निर्देश का पालन करें --
1 -उंकड़ू बैठकर जब गुन -गुना जल पी लें तो उपर्युक्त चार-चार बार पांचों आसन करें।
2 -पांचों आसन करने के तुरंत बाद पुनः वही गुन -गुना जल दो गिलास पीकर पुनः पाँचों आसन करें।
3 -अब आसन करने के बाद पुनः दो गिलास वही जल पीकर और वही पांचों आसन करना है। (यह क्रिया करते समय यदि शौच लगे तो शौच जाना चाहिए। )
4 -यदि शौच लगे तो शौच होने बाद (शौच न लगे तो भी पानी पीना है और आसन करना है। )पुनः वही उतना ही जल पीकर पाँचो आसन करना है।
5 -अब उपर्युक्त पाँचों आसन करने के बाद पुनः वही उतना ही जल और उतना ही आसन करना है।
6 -इस क्रिया को करने के दिन से तीन दिन तक किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना है। ध्यान योग हेतु कर रहे हों तो भी और सामान्य जीवन के लिए कर रहे हों तो भी नशा न करें।
7 -जब पहले से ही अधिक लैट्रिन हो रही हो तो इस क्रिया को नहीं करना चाहिए या पेचिस पड़ रही हो तो भी क्रिया न करें।
8 -हाई बीपी वाले बिना नमक के केवल नींबू पानी पीकर करें।
9 -जिन लोगों को कफ,जोड़ों में दर्द ,या अस्थमा हो वह लोग बिना नींबू का जल पीकर क्रिया करें।
10 -जो लोग अधिक कब्ज से हों वह लोग शाम को ही त्रिफला चूर्ण ले लें और तब प्रातः क्रिया करें।
11 -यदि नमक +नींबू +पानी लेने से समस्या हो तो केवल गुनगुना जल पीकर उपर्युक्त आसन करना चाहिए।
12 -यदि हिर्दय रोगी हों तो शंखप्रक्षालन न करें।
13 -जिसे चक्कर आता हो ,मिर्गी आती हो वह लोग भी न करें।
14 -नाबालिग बच्चों को नहीं करना चाहिए।
15 -शंखप्रक्षालन करने के पश्चात तीन दिन स्त्री -पुरुष का समागम न हो और न ही कोल्डड्रिंक ,लस्सी ,चाय ,कॉफी ,लेना वर्जित है।
16 -शंखप्रक्षालन करने के पूर्व कोई योगासन ,प्राणायाम आदि न करें।
17 -बिना कुछ खाये -पीये प्रातः खाली पेट ही क्रिया करना है।
18 -यदि पेट में ट्यूमर हो तब क्रिया बिलकुल न करें।
19 -सर्दी ,जुक़ाम ,बुखार ,निमोनियाँ ,या किसी रोग से विशेष रूप से पीड़ित हों तब भी शंखप्रक्षालन न करें या योगा चार्य के निर्देशन में करें।
2०- यदि हाई बीपी के रोगी हों तो शंख प्रक्षालन न करें 21 - पानी में नमक और नीबू स्वाद अनुसार मिलायें न अधिक ही हो न अधिक कम हो।
इस प्रकार से कुल 10 गिलास पानी पीना और कुल पांच बार आसन करना होता है। जब पहली बार जल पीकर आसन करतें हैं तो पहले मल निकलता है। दुसरी बार जब उपर्युक्त अनुसार क्रिया करते हैं तो मल पीला और कुछ पानी के साथ मल निकलता है। तीसरी बार क्रिया करने पर बिल्कुल पतला मल निकलता है और कुछ सफेदी के साथ। चौथी बार क्रिया करने पर कुछ -कुछ गंदा पानी जैसा अथवा केवल पानी के रूप में मल निकलेगा। पाँचवीं बार जब क्रिया करतें हैं तो मल के रूप में केवल स्वच्छ जल निकलता है। इस प्रकार से यह क्रिया पूर्ण हो जाती है।
शंखप्रक्षालन क्रिया में सावधानी ध्यानाभ्यसियों के लिए --------
1 -जिस दिन प्रातः उक्त क्रिया करना है उसके एक दिन पूर्व से ही हल्का एवं सुपाच्य आहार लें और विशेष कर मूंगदाल की खिचड़ी लेना चाहिए।
2 -आसन करने के लिए जब जल पीएं तो गुन -गुना हो और बैठकर पीएं।
3 -पानी में नमक और नींबू का रस अवश्य हो।
4 -सभी आसन जब करें तो शौचालय एकदम निकट होना चाहिए।
5 -जब सभी आसन की पांच बार क्रिया हो जाय और अंत में मल रूप में जब स्वच्छ पानी निकल जाय तो शौच पश्चात कुछ भी नहीं करना है बल्कि कम से कम 45 मिनट शवाशन करना है।
6 -शवाशन करने के 20 -30 मिनट बाद ही स्नान करना है।
7 -स्नान बिल्कुल खुले स्थान पर न करें।
8 -स्नान पश्चात शरीर को कपड़े से ढकना चाहिए।
9 -स्नान कर लेने के बाद मूंगदाल और चावल की शादी पतली खिचड़ी में 30 -50 ग्राम देशी गाय का घी या भैंस का घी डालकर और खूब खिचड़ी के साथ फेंट कर तब खायं।
10 -बाजार का घी कभी भी इस क्रिया के करने के पश्चात खाने में न लें।
11 -जब खिचड़ी खा लें तो तीन घंटे तक शारीरिक या मानसिक रूप से कोई भी कार्य नहीं करना है।
12 -खाने के एक से डेढ़ घंटे बाद ही सामान्य जल पीएं ,फ्रीज का कुछ भी आहार या जल नहीं लेना है।
13 -खिचड़ी खाने के तीन घंटे तक केवल आराम करना है और इस तीन घंटे के समय में सोना तो बिल्कुल निषिद्ध है।
14 -जब तीन घंटे तक आराम कर लें तो किसी प्रकार की भाग-दौड़ या कहीं आना-जाना ,मौसम के अनुसार धूप ,ठण्ड ,वर्षा से भी बचाना है।
15 -एयरकन्डीशन ,पंखे की हवा ,अलाव तापना आदि मौसम के अनुसार इनसे भी बचकर रहना है।
16 -जिस दिन क्रिया को किया गया है उस दिन से लेकर तीन दिन तक उपर्युक्त निर्देशों का पालन करना है।
17 -इन तीन दिनों तक गरिष्ठ भोजन ,तेल ,मसाला ,दूध ,दही आदि नहीं लेना है।
18 -शंखप्रक्षालन करने के दिन से तीन दिन तक केवल सुपाच्य एवं तरल आहार लें और तीन दिन के बाद से हल्का -हल्का वह सब आहार लें जो ध्यान योगियों के लिए हितकर है।
19 -ध्यानाभ्यासियों के लिए उपर्युक्त क्रिया छः माह पर एक बार करना चाहिए। यदि ध्यानावस्था में बैठने हेतु उदर में अधिक समस्या हो तब अपने शरीर की क्षमता के अनुसार तीन माह ,या एक माह में एक ही बार क्रिया करें।
20 -जिनके पेट में अल्सर या आँतों में किसी प्रकार का घाव हो तो शंखप्रक्षालन न करें।
21 - क्रिया करने के पश्चात जब खिचड़ी खा लें तो आवश्यकता अनुसार चार घंटे बाद मौसम के अनुसार मुलायम मीठा फल लेना चाहिए।
22 - जिस दिन क्रिया किया जाय उस दिन सायं को गेहूँ का दलिया ले सकते है।
23 - जब क्रिया समाप्त हो जाए तो प्रयास यह हो कि चार घंटे तक मौन रहकर और पढ़ना, लिखना, सोना, जागना, बोलना, आदि से परहेज करें और केवल आराम करें।
शंखप्रक्षालन के लाभ -----------
1 -शंखप्रक्षालन करने से पूर्णतः छोटी और बड़ी आँत की सफाई हो जाती है। शरीर को बाहर से स्वच्छ रखना सभी करते हैं किन्तु अंदर से शरीर को स्वच्छ करने का सबसे सुगम मार्ग यही है।
2 -ध्यान ,योगासन ,प्राणायाम करने में इससे पूर्ण लाभ मिलता है।
3 -यदि प्रत्येक मौसम परिवर्तन के बाद उक्त क्रिया की जाय तो शरीर निरोग रहता है।
4 -यदि अनिद्रा रोग किसी भी कारण से हो तो सुचारु रूप से नींद आती है।
5 -सब कुछ भोजन के माध्यम से ही रोग होता है इस क्रिया के करने से कभी भी अपच नहीं होता है।
6 -यदि भोजन शरीर में नहीं लगता है तो ,भोजन शरीर को लगने लगता है। 7 -यदि बार- बार रोग होता है तो रोग कम होने लगता है।
8 - शंखप्रक्षालन करने से लीवर की गंदगी दूर होती है ,मूत्र मार्ग स्वच्छ होता है ,चर्म रोग नहीं होता है ,रक्त में जमी गंदगी निकल जाती है।
9 -गैस या कब्ज कितना भी पुराना हो वह जड़ से ख़त्म होता है।
10 -यदि भूख न लगती हो तब खूब अच्छी तरह भूख लगने लगती है।
11 -
4 टिप्पणियाँ
Click here for टिप्पणियाँNice
Replybest KBC office whatsapp number
ReplyKBC office whatsapp number
IMO lucky draw 2021
Kbc lottery no 8991
Keep sharing blog like this
ReplyBest Joint Pain Supplement
Best Immune Booster Supplement
Best Uric Acid Supplement
Best Sugar Free Chyawanprash
Best Cough Syrup
Constipation of solutions veery veery good content
ReplyConversionConversion EmoticonEmoticon